मिशमी जाति /435 इनकी टोपियाँ बेंत की बनती हैं और देखने में बड़ी सुन्दर मालूम होती हैं । उनसे धूप का भी बचाव होता है और यदि शत्रु तलवार या दाँव का बार करे तो उससे भी रक्षा होती है । बेंत की टोपी बारिश में काम नहीं देती। उस मौसिम के लिए ये लोग केले के पत्तों की टोपियाँ बनाने और लगाते हैं। उनके भीतर पानी नहीं प्रवेश करता। वह हुलक कर बाहर गिर जाता है । ये टोपियाँ खूब चौड़ी होती हैं। घास का बना हुआ एक उप- धान भी ये लोग पीठ पर लटकाये रहते है । वह केवल वर्षा ऋतु ही में काम देता है। उमके भीतर पानी नहीं जा मकता । यह उपधान और टोपी, वर्षा में, मोमजामे का काम देती हैं। इन लोगों में विवाह-विषयक पूर्वानुराग का रवाज नहीं। प्रीति सम्पादन यहाँ कोई जानता ही नही । विवाह तो यहाँ एक प्रकार का सौदा ममझा जाता है । इन लोगों की अर्थहीनता देखकर यही कहना पड़ता है कि विवाह इनके लिए एक प्रकार का क़ीमती व्यवसाय है । विशेष प्रकार की एक गाड़ी यहाँ होती है । वह 'मिथुन' कहाती है। उसकी कीमत कोई 256 रुपये होती है । वैमी चार गाड़ियाँ देने से अच्छी से अच्छी पत्नी मिल सकती है। इतना धन खर्च करने से अमीरी ठाट-बाट का विवाह समझा जाता है। पर कभी कभी सुअर के दो बच्चे ही देने से पत्नी मिल जाती है। मिशमी देश मे सुअर के एक बच्चे की कीमत अन्दाज़न 15 रुपये समझे जाती है। यहाँ गुलामी की प्रथा भी जारी जो दास या गुलाम जी लगाकर मालिक का काम करता है और खेती-बारी में उमकी यथेष्ट मदद करता है उसके साथ मिशमी लोग बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं । उसे वे बड़े आराम से रखते हैं। मिशमी लोगों के समुदाय में धर्म और मत-मतांतरों का नाम तक नही । ये इन बातो का ज्ञान बिलकुल ही नहीं रखते । परन्तु संसार के अन्यान्य अनार्यों की तरह ये लोग भी भूत-प्रेतो में विश्वास रखते हैं। भूत-प्रेतों की ये सदा ही मिन्नत-आरजू करते और उन्हें मनाते-पथाते रहते है । परन्तु इनके मनाने के कोई कोई ढंग बड़े ही अजीब क्या भीषण तक होते हैं । यथा -मृत पति की आत्मा को शान्ति देने या उसे सुखी करने के लिए कभी कभी ये लोग उसकी विधवा पत्नी को ज़मीन में जिन्दा ही गाड़ देते है। पर ऐसे भीषण काण्ड बहुत ही विरल होते हैं । यह क्रूर क्रिया तभी होती है जब मिशमी लोग देखते हैं कि विधवा स्त्री बूढ़ी हो गई है अथवा वह बांझ है । अतएव वह समाज के लिए भार-भूत हो रही है । ऐसे बोझ को जमीन में गाड़कर अपने आपको हलका कर लेना बुरा नहीं समझा जाता । मिशमी लोगों के देश में काहिलों और बूढ़ों के रहने की गुंजायश नही। खूब काम करने वाले चुस्त और चालाक आदमियों ही की गुजर-बसर हो सकती है, बेकार बैठने वालों की नहीं । एक गाँव में एक बूढ़ा आदमी था। वह कमाता-धमाता न था। अपनी गुजर-बसर वह आप अपने बूते न कर सकता था। वह दूसरो के लिए भारभूत था। दैवयोग से उसी गांव में एक रात को दो बच्चे मर गये। बस वहाँ वालों को मन- चीता मौका मिल गया। झट बूढ़े पर यह इल्जाम लगाया गया कि इसी ने टोना-टम्बर
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