पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

42 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली , धीरे, बहुत दूर तक बढ़ा लिया था। बौद्ध हो जाने पर उन्होंने मध्य जावा के शैवों से उनका राज्य छीनकर वहाँ भी अपना प्रभुत्व जमाया। दसवें शतक में इसी वंश के एक राजा ने मदरास के पास नेगापट्टन में एक मन्दिर बनवाया। इस काम में जो कुछ खर्च पड़ा वह उसी राजा ने दिया; मन्दिर बनवाने की आज्ञा-मात्र दक्षिण के तत्कालीन चोल- नरेश ने दी । सुमात्रा के इन नरेशों ने भारत में और भी कई मठ तथा मन्दिर आदि वनवाये । नालन्द में एक ताम्रपत्र मिला है। उसमें लिखा है कि सुवर्णद्वीप (सुमात्रा) के शैलेन्द्र-वंशी राजा बालपुत्रदेव ने वहाँ पर एक मठ या विहार बनवाया। उसके खर्च के लिए बंगाल के पाल-नरेश ने कुछ गाँव अलग कर दिये, क्योंकि उसका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर था। सुमात्रा के नरेशों की राजधानी श्रीविजय नामक नगर था और वहाँ के पराक्रमी अधिपति महायान-सम्प्रदाय के बौद्ध थे। ये लोग पहले हीनयान-सम्प्रदाय के थे; क्योकि सातवें शतक में जब चीनी परिव्राजक इत्सिग सुमात्रा में था तब उसने वहाँ हीनयान- सम्प्रदाय ही का आधिक्य पाया था। सुमात्रा और जावा में उपनिवेश स्थापित करके वही बस जाने वाले हिन्दुओ का अधिक सम्पर्क, पहले पहल, दक्षिणी भारत से था। वे लोग दक्षिण ही से जाकर वहाँ बस गये थे । पर निकट होने के कारण, कालान्तर में, उनका आवागमन बंगाल और मगध से अधिक होने लगा । फल यह हुआ कि शिलालेखों और ताम्रपत्रों में दक्षिण की पल्लव-ग्रन्थ-लिपि के बदले उत्तरी भारत का लिपि स्थान पाने लगी। शैलेन्द्र-वंशी एक राजा ने 700 शक (778 ईसबी) में तारा का एक मन्दिर, जावा में, बनवाया। उमसे सम्बन्ध रखनेवाले लेख में उत्तरी भारत की लिपि का प्रयोग हुआ है। यह लिपि देव- नागरी से कम, बँगला से अधिक, मिलती-जुलती है। श्रीविजय के नरेशो के शासन काल में जावा अर्थात् यवद्वीप की बड़ी उन्नति हुई । कला-कौशल और मन्दिर- निर्माण आदि के कुछ ऐसे काम उस समय हुए जिन्हें देखकर बड़े बड़े यंजिनियर और कला-कोविद शतमुख से उनकी प्रशंसा करते हैं । बोरो- वोदूर के विश्वविश्रुत मन्दिर-समूह उसी समय बने । चण्डी-मेन्दूत की अवलोकितेश्वर की प्रसिद्ध मूर्ति का निर्माण भी तभी हुआ । यह मूर्ति गुप्तकालीन मूर्ति-निर्माण-प्रणाली से टक्कर खाती है और बहुत ही अच्छी है । श्रीविजय के शैलेन्द्र-नरेश संस्कृत भाषा के साहित्य के भी उन्नायक थे। उनमें से एक राजा ने अपने यहाँ की 'कधी' भाषा में संस्कृत एक शब्दकोश की रचना भी की। जावा में सुमात्रा के श्रीविजय-नरेशों का राज्य ईमा के दसवें शतक तक रहा। दसवें शतक में मध्य जावा के शैव-नरेश, जो अपने देश से निकाले जाने पर पूर्वी जावा में जा बसे थे, फिर प्रवल हुए । उस समय श्रीविजय के सूबेदार या गवर्नर मध्य में शासन करते थे। उन्होंने उन सूबेदारों को निकाल बाहर किया और अपना गज्य उनमे छीन लिया। तब बौद्धों का प्रभुत्व वहाँ फिर बढ़ा और अनेक विशालकाय शिवालयों और मन्दिरों का निर्माण हुआ। उनमें से एक मन्दिर में रामायण से सम्बन्ध रखने वाली बड़ी ही सुन्दर चित्रावलियां और मूर्तियां बनाई गई। इसके बाद किसी -