पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४७

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सुमात्रा और जावा आदि द्वीपों में प्राचीन हिन्दू-सभ्यता/43. दुर्घटना-बहुत करके किसी ज्वालामुखी पर्वत के स्फोट के कारण मध्य जावा उजड़ गया। तदन्तर पूर्वी जावा की बारी आई । यू-सिन्दोक नामक नरेश के प्रताप से उसकी उन्नति हुई । उसने वहाँ एक बलवान राज्य की नीव डाली। उसकी पौत्री महेन्द्रदत्ता का विवाह बाली के गवर्नर उदयन के साथ हुआ। उदयन का पुत्र एरलिङ्ग बड़ा प्रतापी हुआ। पन्द्रह ही वर्ष की उम्र में उसे, अपने शत्रुओं के भय से, वाणगिरि नामक जगल को भाग जाना पड़ा । वहाँ उसने बहुत समय बड़े कष्ट से काटा। उसने वहाँ प्रतिज्ञा की कि यदि मुझे मेरा पैत्रिक राज्य फिर प्राप्त हुआ तो मैं इस अरण्य में एक आश्रम बनवाऊँगा । उसकी इच्छा, कालान्तर में, पूर्ण हुई। सब उसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उम अरण्य में एक भव्य आश्रम का निर्माण कराया। वहीं पर प्राप्त हुए सन् 1035 ईसवी के एक शिलालेख से ये सब बातें मालूम हुई हैं। यह राजा बड़ा प्रतापी था । अपने सभी शत्रुओ पर इसने विजय प्राप्त की। इसके राज्यकाल मे साहित्य की बहुत उन्नति हुई। अर्जन-विवाह और विराट पर्व काव्य तथा रामायण और महाभारत के अनुवाद आदि अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ, इसी के समय में, जावा की पुरानी ('कवी') भापा में निम्मित हुए । वृद्ध होने हर एरलिङ्ग वानप्रस्थ हो गया। उसने अपना राज्य अपने दोनो बेटों को बराबर बाँट दिया। यह हिस्सा-बाँट भरत नाम के एक 'सिद्ध' मुनि ने किया। एक को केदरी का और दूसरे को जांगल का राज्य मिला। यह घटना 1042 ईसवी में हुई। जांगल-राज्य के विषय में तो विशेष कुछ भी ज्ञात नहीं; परन्तु केदिरी-राज्य ने बड़ी म्याति पाई। उस राज्य के कवियों ने 'कवी' भाषा के साहित्य की बहुत उन्नति की। वर्षजय नामक राजा के आश्रित कवि त्रिगुण ने, 1104 ईसवी में, सुमनसान्तक और कृष्णजन नामक प्रसिद्ध काव्यों की रचना की। 1121) ईमवी के आसपास कामेश्वर नामक राजा के समय में, पू-धर्मज नाम के कवि ने स्मरदहन नाम के काव्य का निर्माण किया। इस राजा का विवाह जांगल-देश की राजकुमारी चन्द्रकिरण के साथ हुआ था। सन् 1135 और 1155 ईसबी के बीच, केदिरी-राज्य के सिहासन पर जयवय नाम का राजा आसीन रहा। उसने बढ़ी ख्याति पाई। उसके राज्यकाल के सुखैश्वर्य वर्णन प्राचीन पुस्तकों मे लिखे हुए पाये जाते हैं । उसका राज्य धर्म-राज्य माना गया है। उसके समय में भारत-युद्ध और हरिवंश नामक ग्रन्थों का उदय हुआ। भारत-युद्ध का वर्णन प्रथम पुस्तक में इस तरह किया गया जैसे वह जावा ही में हुआ हो और कौरव- पाण्डवों के बदले वहीं के नरेशो ने आपस में युद्ध किया हो। लिखा है कि जयवय राजा इतना प्रतापी और पराक्रमी हुआ कि उसने सुवर्णद्वीप (सुमात्रा) को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। यह राजा वैष्णव था। 1129 ईसवी में केदिरी-नरेश को चीन के राजराजेश्वर ने 'राजा' की उपाधि से अलंकृत किया। उस समय यवद्वीप के व्यवसायी सामुद्रिक यात्रायें दूर दूर तक करते