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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६३

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यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें /459 गति से, उसी के हमें आ गये था । अब पारलियामेंट की सम्मति लिए बिना राज्य- प्रबन्ध का कोई काम नहीं किया जाता। यद्यपि इंगलैंड में, फ़ांस और अमेरिका के ममान केवल प्रजासत्ताक शासन-पद्धति नहीं है; तथापि वहाँ राजा की उचित और मर्यादित सत्ता के साथ प्रजा की स्वाधीनता इस प्रकार मिश्रित हो गई है कि दोनों का ध्यान देशोन्नति ही की ओर बना रहता है । यथार्थ में प्रजा की स्वाधीनता और शासन-पद्धति की यह अत्यन्त उन्नतावस्था है । दुनिया के सभी राजनीतिनिपुण पण्डितों ने इंगलैंड की शासन-पद्धति की प्रशंमा की है । क्या यह आश्चर्य और प्रशंसा की बात नहीं कि इंगलैंड जैसा छोटा सा टापू, इस समय, केवल अपनी ही अद्भुत शासन-पद्धति से, यूरोप के राष्ट्रों में अत्यन्त बलवान् और माननीय समझा जाता है ? जब से पूर्व और पश्चिम का संयोग हुआ है और हम लोगो को पश्चिमी देशो की ऐतिहासिक बातें मालूम हुई है तब से हमारे बहुतेरे भाइयों के मन में अपने देश के अभ्युदय तथा उन्नति की तीव्र इच्छा जागृत हुई है । इस इच्छा को कार्घ्य में परिणत करने के लिए न्यायप्रियता और स्वार्थ-त्याग की आवश्यकता है । माथ ही दृढ़ता की भी आवश्यकता है। उपर्युक्त गुणों के अभाव से हमारे सब यत्नो की वही दणा होती देग्य पड़ती है जो कि इम वाक्य में मूचित की गई है-"उत्पद्यले विलीयन्त दरिद्राणां मनोरथाः"। यदि अँगरेजी राज्य के कृपा-छत्र का आश्रय पाकर भी हम लोग अँगरेज़ो के इतिहास से दृढ़ता, स्वार्थ-त्याग और न्यायप्रेम की शिक्षा न ग्रहण कर सकेंगे तो उक्त संस्कृत-वाक्य मे सूचित की हुई दशा मदा ही बनी रहेगी। मफलता उचित गुणों के विकास तथा वृद्धि से होती है; कोरी बातो से नहीं। दूसरी बात यह है कि इस इतिहास से यह शिक्षा न लेनी चाहिए कि, सत्रहवीं सदी के अँगरेज़ों की तरह हमे भी अपने राजा के साथ वैसा ही व्यवहार करना उचित है। प्राचीन इतिहास के दृष्टान्तो से इस प्रकार की शिक्षा लेना बड़ा भारी भूल ही नहीं किन्तु मूर्खता होगी । ऐतिहासिक उदाहरणो से केवल तात्त्विक शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए जिस हेतु की सिद्धि के लिए सत्रहवीं सदी में उग्र उपायो की योजना करनी पड़ी उसी हेतु की सिद्धि, अन्य देशों में, अन्य उपायो से अनेक बार की गई है। साराश यह कि हमे उपायों की ओर नहीं, किन्तु उद्देश की ओर ध्यान देना चाहिए और उसकी सिद्धि के लिए विधि-विहित (Constitutional) मार्ग से चावल भर भी न हटना चाहिए । अँगरेज़ी राज्य की छत्रच्छाया के नीचे रह कर हमें अपनी उन्नति करने के अनेक साधन मौजूद है ? हमें केवल दृढ़ता, अध्यवसाय और निःस्वार्थ भाव का आलम्बन करना चाहिए । तीसरी बात यह है-यह न सोचना चाहिए कि अंगरेज़ जाति को वर्तमान समय की उन्नतावस्था प्राप्त करने मे जितना समय लगा है उतना ही समय हम लोगों को भी उनके समकक्ष होने को लगेगा। नहीं जिन लोगों ने इतिहास का मनन किया है उनकी राय है कि जब कोई देश किसी अन्य देश की सभ्यता का अनुकरण करने का यत्न करने लगता है तब वह देश अपने गुरु-रूप अर्थात् मार्गदर्शक अन्य देश की अपेक्षा थोड़े ही समय में सफलता प्राप्त कर लेता है । इस विषय में जापान का उदाहरण मौजूद है । यूरोप को अपना गुरु बनाकर जापान ने अल्प समय ही में अपनी उन्नति कर ली। इस प्रकार -