पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६६

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462 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली कारण इतिहास पढ़ने वाले जानते हैं कि फ्रांस देश की यह राज्य-क्रान्ति अठारहवीं सदी के अन्त में हुई। यद्यपि इस राज्य-क्रान्ति का वर्णन करने में सन् 1789 से 1795 तक ही की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया जायगा, तथापि उसके कारणों का विचार करते समय कुछ पूर्व समय की बातों की ओर देखना भी आवश्यक है। इस राज्यक्रान्ति के मुख्य कारण तीन हैं-1. मर्व-साधारण लोगों की दरिद्रावस्था; 2. राज्य का प्रबन्ध; 3. अठारहवीं सदी के लेखकों का प्रभाव । इन तीनों कारणों के विषय में अलग अलग विचार किया जायगा। फ्रांस देश के साधारण लोगों की आर्थिक दशा सन् 1690 ही से बिगड़ने लगी थी। लोगों को न पेट भर भोजन मिलता था और न पहनने-ओढ़ने को कपड़े। प्रजा की दरिद्रावस्था के विषय में, उस समय की सरकारी रिपोर्ट में, लिखा है-"सभी कुटुम्बो के लोग दो दिन से भूखे हैं। बहुतेरे लोग भूख का दुःख दूर करने के लिए दिन रात बिस्तर पर पड़े रहते हैं । कुछ लोग तो अनुचित उपायों से अपना पेट भर रहे हैं । अनेकों के यहाँ ईंधन तक नहीं है । वे लोग चारचाइयों की लकड़ियां जलाकर रोटी बनाते हैं।" इस विषय का अधिक विस्तार करने की आवश्यकता नहीं। लोगों की यह दुर्दशा, सन् 1789 ई० के दुर्भिक्ष से, और भी बहुत बढ़ गई। परन्तु दरिद्रावस्था राज्य-क्रान्ति के लिए पर्याप्त कारण नहीं है। इस दरिद्रावस्था का मुख्य कारण राज्य का कुप्रबन्ध ही था। - फ्रांस देश के निवासियों के, बहुत दिनों से, दो भिन्न भिन्न वर्ग हो गये थे। एक वर्ग में वे बड़े बड़े सरदार, जमींदार, रईस, धर्माधिकारी इत्यादि लोग थे जो यह ममझते थे कि हमको देश की मारी सम्पत्ति का उपभोग करने का स्वाभाविक हक़ है । इन लोगों को अँगरेजी में (Privileged Classes) (हक़दार वर्ग) कहते है। दुसरे वर्ग में सर्व-माधारण (Masses) थे, जो हकदार वर्ग के अधीन रहकर किसी न किसी प्रकार अपना पेट भरते थे। गजमत्ता का भी बहुत बड़ा भाग इन्हीं हक़दार वर्गों के हाथ चला गया था । इसलिए केवल सरकारी करों को बोझा ही साधारण लोगों पर न लादा जाता था, किन्तु उनको हकदार वर्गों के लाभ के लिए और भी अनेक काम करने पड़ते थे। ये बड़े लोग कभी किसी प्रकार का कर न देते थे, उलटा अपनी अपनी जमींदारी में रैयत पर जुल्म किया करते थे। ज्यों ही किसान अपनी खेती की कुछ तरक्की करता त्यों ही उसके पास से अधिक कर वसूल किया जाता था। मितव्यय और व्यवसाय को कुछ भी क़दर न थी । साधारण लोगों में यदि कोई धनवान होता तो उसको सदा अधिक कर देने का भय बना रहता था। रूसो नाम के लेखक ने लिम्बा है-"It was ruin to a peasant to be suspected not to be on the verge of starvation.” stata उस किसान को बहुत दुःख भोगना पड़ता था जिसके विषय में यह सन्देह किया जाता था कि वह दरिद्री नहीं है। तात्पर्य यह कि, राज्य का प्रबन्ध ठीक ठीक न होने के कारण साधारण लोग सदा दरिद्री और बड़े लोगों के आश्रित बने रहते थे। राजा की सत्ता केवल नाम की थी-वह भी हक़दार वर्ग के अधीन था!-भेद इतना ही था कि वह