पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें /463 अपने को सब लोगों का सबसे बड़ा हक़दार सरदार समझता था। इसमें मन्देह नहीं कि इन सब हकदार लोगों से-बड़े बड़े मग्दागे, ज़मींदारों, रईमों और धर्माधिकारियों से-प्रजा की कुछ भलाई भी होती थी। ये लोग अपने देश की रक्षा करते; विदेशियों को अपने देश पर आक्रमण न करने देते; और देश में शान्ति रखने का यत्न करते थे। परन्तु इस प्रकार देश की रक्षा करने और शान्ति रखने के लिए प्रजा को बहुत वे-डब कीमत देनी पड़ती थी। अठारहवीं सदी में, स्वतन्त्र विचार के कुछ लेखकों ने, हक़दार लोगों के हक़ों की सारी पोल खोल दी। नूतन विचारों की जागृति में सर्व-साधारण लोगो को यह मालूम हो गया कि ईश्वर ने किमी मनुष्य को न छोटा बनाया है और न बड़ा। सब मनुष्यों के हक ममान हैं। जो मनुष्य अपने को विशेष हक़दार समझता है उसको मनुष्य जाति का शत्रु समझना चाहिए । जिन लेखको ने अठारहवीं मदी में नूतन विचारों को जागृति की उनमें वाल्टेयर, रूसो, मान्टेस्क इत्यादि मुख्य हैं। वाल्टेयर की शिक्षा का सारांश यही है कि प्रत्येक मनुष्य को स्वयं विचार करने और अपने विचार के अनुसार कार्य करने की स्वाधीनता होनी चाहिए । रूमी ने यह मत प्रकट किया कि सारे मनुष्य समान हैं-छोटे बड़े का भेद कृत्रिम है । उसने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है- "It is clearly contrary to the Law of Nature...that a handful of people should abound in super- fiuities while a famishing multitude is without necessaries." srafa बात प्राकृतिक नियम के विरुद्ध, है कि देश की सारी संपत्ति कुछ थोड़े से लोगों के हाथ में चली जाय और अधिकांश लोग जीवनोपयोगी आवश्यक वस्तुओं से भी वंचित होकर भूखों मरे । राज्य-प्रवन्ध के विषय में उमने यह शिक्षा दी कि राज्य किसी एक व्यक्नि का नहीं, किन्तु सब लोगों का है। मान्टेस्क अँगरेजी संस्थाओ का पक्षपाती था। वह चाहता था कि फ्रांम में अँगरेजी संस्थाओं के ढंग पर सुधार किया जाय । इन लेखको के सिवा और भी अनेक ग्रन्थकार हुए जिन्होंने मामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक विषयो पर नये विचार प्रकट किये। इन लेखकों के स्वतन्त्र विचारो से फ्राम में विचारक्रान्ति का आरम्भ हो गया। ऊपर लिम्वे कारणो के अतिरिक्त और भी कुछ बातें ऐमी हुई जिनसे राज्यक्रान्ति करने वालों को सहायता पहुंची। सरकारी खजाने में द्रव्य को प्रायः सदा कमी बनी रहती थी-फेच सरकार और हक़दार वर्गों में कुछ झगडा हो गया था; सरकारी सेना में प्रबन्ध का आधिक्य हो गया था; और राज-सता कुछ कमजोर होने लग गई थी। इन्हीं कारणों से अन्त को फ्रांस मे राज्यक्रान्ति हो ही गई । आरम्भ जिस समय फ्रांस में विप्लव हुआ उस समय सोलहवां लुई वहाँ राज्य करता था। उसके पहले, चौदहवें लुई के शासनकाल में, राज्य के प्रबन्ध का ख़र्च इतना बढ़ गया था कि सरकारी खजाना प्रायः खाली बना रहता था। इसलिए छोटे बड़े सभी लोगों पर नये कर लादे गये । परन्तु चौदहवें लुई के बाद, पन्द्रहवें और सोलहवें लुई की अमलदारी