पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४८

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44 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली थे। अफ़रीका के पूर्व-तटवर्ती सोफाला नामक बन्दरगाह तक उनके जहाज जाते थे । वे लोग वहाँ से हबशी दास भी जावा को ले आते थे। वे केदिरी-नरेश की सेवा के लिए नियुक्त होते थे। कुछ पुरातत्त्व-वेत्ताओं का खयाल है कि सन् ईसवी को प्रारम्भिक शताब्दियों में सुमात्रा और जावा के हिन्दुओं ने मैडेगास्कर नामक द्वीप में अपने उपनिवेश स्थापित करके उसे आबाद किया था। जावा की पुरानी भाषा 'कवी' में दो इतिहास बड़े मार्के के हैं। एक का नाम है नगर कृतागन, दूसरे का परारतन । पहले ग्रन्थ में ईसा की बारहवीं सदी से 1365 ईसवी तक का और दूसरी मे 1478 ईमवी तक का इतिहास निबद्ध है। इनसे जो बातें जानी जाती हैं उनका दिग्दर्शन नीचे किया जाता है। जावा में केन-अरोक नाम का एक बड़ा ही मायावी सरदार था। वह बुद्धिमान् भी था और साथ ही कुटिल और कपटी भी था। केदिरी के अन्तिम अधिपति का नाश करके, 1220 ईसवी में, वह उस गज्य का स्वामी बन बैठा। उसने शृङ्गश्री (सिङ्गसारी) को अपनी राजधानी बनाया। मान वर्ष में वह अपने राज्य को दृढ़ कर ही पाया था कि 1227 ईमवी में वह मारा गया। उसके अनन्तर दो राजे और हुए, पर उनके राजत्वकाल में कुछ भी विशेष घटनाये नही हुई। शृङ्गश्री के चौथे राजा कृतनगर का राजत्वकाल, अनेक विषयों में, महत्त्वपूर्ण घटनाओ के कारण बहुत प्रसिद्ध हुआ । उसने अपने राज्य की सीमा के पास-पड़ोस वाले कितने ही देशों और प्रदेशो पर चढाइयाँ करके उन पर विजय प्राप्त की। परन्तु बाहरी लड़ाइयों में लगे रहने के कारण वह स्वदेश का शासन अच्छी तरह न कर सका। वह बड़ा अभिमानी था । उसने चीन के राजेश्वर कुबिलाईखां के भेजे हुए राजदूत तक का अपमान किया। उससे उसके मरदार और मण्डलेश भी नाराज़ थे । फल यह हुआ कि केदिरी के मण्डलेश्वर जयकटोग ने उसे मार डाला। उमका दामाद रेटन-विजय, इम युद्ध में; अपने मसुर कृतनगर का महायक था । वह भी जयकटोग के भय से एक छोटे से टापू को भाग गया। कुछ समय के अनन्तर वह वहाँ से लौटा और कपटाचार की बदौलत अपने शत्रु जयकटोंग को मार कर आप गजा बन गया। उसने माजापिहित नाम का एक नया नगर वमाया। वहीं उमने, 1214 ईसवी मे, अपना अभिषेक कराया। सिहामनामीन होने पर उसने अपना नाम रक्खा-कृतराजम जयवर्धन । जिस स्थान पर इम राजा के शव का दाह हुआ था वहाँ पर उसकी एक बड़ी ही सुन्दर प्रस्तरमूर्ति विद्यमान है। उसमें उसकी आकृति विष्णु की जमी बनाई गई है । विष्णु के आयुध भी उममें ज्यों के त्यों बने हुए हैं। इससे सिद्ध है कि वह पूर्ण वैष्णव था । कृतराजम का पुत्र निकम्मा नरेश हुआ। उसके बाद उसकी बहन त्रिभुवनो- तुङ्गदेवी जयविष्णुद्धिनी मिहासन पर बैठी। उसकी बहन राजदेवी और माता गायत्री भी उसके साथ, राजकार्य में, भाग लेती रही। रानी का प्रधानामाल्य मजमद बड़ा चतुर और शासन-कुशल था। उसने, 1343 ईसवी में, बाली और उसके निकटवर्ती द्वीरों और प्रान्तों को जीत कर माजापिहित-राज्य की सीमा खूब विस्तृत कर दी। उसने और भी कई राज्यों पर विजय पाने की प्रतिज्ञा की थी। पर उसका यह काम,