यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें | 471 तक फ्रांस को योरप की सम्मिलित शक्तियों से से लड़ना पड़ा। इस लडाई का वर्णन करने के लिए प्रस्तुत लेख में स्थान नहीं । राज्यक्रान्ति करने वालो ने उत्साहपूर्वक अपने देश की रक्षा की। इस समय फ्रेच सरकार की कार्यकारिणी मण्डली के सब अधिकार डैन्टन, मैग्ट, गब्मपीयर इत्यादि लोगों के हाथ में थे, जो भयानक अत्याचार की पद्धति के पूरे पक्षपाती थे। उन लोगों ने कई कानून बना कर अपनी सत्ता बहुत दृढ़ और अमर्यादित कर ली थी। जिस आदमी के सम्बन्ध में उन्हें कुछ भी मन्देह होता था उसे बिना जाँच और विना इन्माफ़ के ही वे फांसी पर लटका दिया करते थे। इन लोगों की अमलदारी में कम से कम 3000 आदमी क़त्ल किये गये । मैरट को एक स्त्री ने धोखे मे मार डाला। मत्ताधिकारी पुरुषो ने रानी को भी फाँसी पर लटका दिया। डैन्टन ने इस दारुण अत्याचार का विरोध किया, इस कारण उसका भी वध किया गया। इन अत्याचारी का वर्णन करना असम्भव सा है। शंकारूप राक्षस की प्रेरणा से राज्यक्रान्ति करने वालो न आने ही दश-बान्धवो की हत्या की, जैसा कि किमी लेखक ने कहा है-"The Revolution is swallowing her own children! कुछ समय तक रामपीयर ने राज्यप्रवन्ध में सुधार करने का प्रबन्ध किया, और उमने कुछ अच्छे सुधार किये भी। परन्तु 28 जुलाई मन् 1794 को वह भी फांसी पर लटका दिया गया। अब फ्राम मे भय का माम्राज्य इतना बढ़ गया था कि कोई आदमी अपनी जान और अपने माल को क्षण भर भी सुरक्षित न समझता या। कहा गया है कि, "अति सर्वत्र वर्जयेत् ।" जब किसी बात की 'अति' होती है तब जानना चाहिए कि उसकी 'इनि' भी शीघ्र ही होगी। इसी नियम के अनुसार फ्रास के बहुतेरे लोग भयोत्पादक राज्य-पद्धति से घृणा करने लगे। स्वयं राज्यक्रान्तिकारको मे भी अनेकों ने यही मन प्रकट किया। उन्होंने कहा कि अब भयोत्पादक पद्धति की कोई आवश्यकता नहीं। इस प्रकार मारे देश में धीरे धीरे अत्याचार-पद्धति के विरुद्ध प्रतिक्रिया होने लगी । अत्याचार. पद्धति के पक्षपातियो ने कुछ समय तक जोर माग; परन्तु, अन्त मे, उन्हे हार खानी पड़ी। सन् 1791 से ई० के राज्य-प्रबन्ध सम्बन्धी नियमो में कुछ परिवर्तन करके, 1795 के अन्त मे, नूतन प्रजासत्ताक राज्य का उचित प्रबन्ध किया गया। इसके बाद का इतिहास इस लेख में शामिल नहीं किया जा सकता। अब यह देखना चाहिए कि इस राज्यक्रान्ति का परिणाम क्या हुआ। उपसंहार इस राज्यक्रान्ति से राजनीति-विशारदो ने सिद्ध किया है कि विचार अथवा भाव में अद्भुत सामर्थ्य है। अठारहवीं सदी के लेखको के उपदेश से ज्यो ही फ्रेच लोगो में मनुष्य के स्वाभाविक हक, संस्थाओ की पूर्णता, प्रकृति का अधिकार, ग़रीब आदमियो को रोटी देने का उचित प्रबन्ध इत्यादि बातो के विचार जागृत हुए त्यो ही वे राज्य- क्रान्ति के द्वारा अपने देश की उन्नति और सुधार का यत्न करने लगे। यह इन्ही नूतनं विचारों अथवा भावों का प्रभाव है कि वे लोग अपने देश की प्राचीन राजसत्ता तथा
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