पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/५७

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पुराने अँगरेज अधिकारियों के संस्कृत पढ़ने का फल इंगलिस्तान के व्यापारी तो बहुत पहले से भारत में व्यापार करते थे; पर उन मब का काम अलग अलग होता था, एक में न होता था। इससे काम-काज मे सुभीता कम था और मुनाफ़ा भी कम होता था। इस त्रुटि को दूर करने के लिए 125 आदमियों ने मिल- कर, माढ़े दम लाख रुपये की पूंजी से, एक कम्पनी बनाई। इंगलैंड की रानी एलिजावेथ ने 31 दिसम्बर,1600 को इस कम्पनी की दस्तावेज पर दस्तख़त करके इंगलैंड और भारत के बीच व्यापार करने की आज्ञा दी। ईस्ट इंडिया कम्पनी की जड़ यही से जमी, अथवा यो कहि ५. अंगरेजी राज्य का मूत्रपात यही से हुआ। इसी 125 व्यापारियों की कम्पनी ने, कुछ दिनो में, राजमी ठाठ जमा लिया और अपने देश इंगलिस्तान की अपेक्षा जिम देश की आबादी दम गुनी में अधिक है, उस पर व्यापार करते-करते राज- मना भी चलाने लगी। इस कम्पनी के साझीदार अपने देश में तो अपने बादशाह की रियाया थे, पर भारत में खुद ही बादशाह बनकर हुकूमत करने थे; फ़ौजें रखते थे; बड़े- बड़े राजो, महागजो और शहंशाहो की बराबरी करते थे; लड़ाइयाँ लड़ते थे; सन्धि- स्थापना करते थे और न मालूम कितने मत्तासूचक काम करते थे। ऐमा दृश्य इस भूमण्डल में बहुत कम देखा गया होगा। यह हमारा निज का कथन नही, किन्तु लन्दन की टी० फ़िशर अनविन कम्पनी के लिये एक रगोजिन साहब ने जो भारतवर्ष का एक प्राचीन इतिहास लिखा है उसके एक अंश का अवतरण मात्र है। भारत में व्यापार करने वाले योरप के गोरे व्यापारियों की यह पहली ही कम्पनी न थी। पोर्चगीज लोग यहाँ बहुत पहले से-जब से वास्फोडिगामा ने 1498 ईसवी में इस देश की भूमि पर कदम रक्खा- व्यापार में लगे थे। विदेशी व्यापारियों में वे अकेले ही थे और खूब मालामाल हो रहे थे। अँगरेज व्यापारियों ने देखा कि ये लोग करोड़ों रुपये अपने देश ढोये लिये जा रहे हैं: चलो हम भी इन्ही की तरह भारत में व्यापार करें और जो मुनाफ़ा इन लोगों को हो रहा है. उसका कुछ अंश हम भी लें। पोर्चुगीजों का व्यापार कोई सौ वर्ष तक बिना किसी विघ्न बाधा के भारत मे जारी रहा। इसमें कुछ मन्देह नहीं कि वे लोग एक गन्त के बाद दूसरे प्रान्त को अपनी जमींदारी में शामिल करके पूरे मुल्क को अपने कब्जे में कर लेने का इरादा रखते थे। वे लोग अपने इस इरादे को कार्य में परिणत कर रहे थे कि ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में पदार्पण किया। अँगरेज़ व्यापारी पोर्चुगीज लोगों से किसी बात में कम न थे। उन्होंने बड़ी दृढ़ता से पोर्चुगीजों का सामना किया। उनके साथ चढ़ा-ऊपरी करने में अंगरेजों ने बड़ी सरगरमी दिखाई। फल यह हुआ कि पोर्चुगीज लोगों का प्रभुत्व धीरे-धीरे कम -