सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुराने अंगरेज़ अधिकारियों के संस्कृत पढ़ने का फल / 55 तक लड़ी गईं। एक कम्पनी दूसरी के पीछे ही पड़ी रही । होते-होते अँगरेज़ों का प्रभुत्व बढ़ा, उसने फ्रांसवालों के बल को नष्ट-प्राय कर दिया। पांडीचेरी और चन्द्रनगर की जमीदारियों को छोड़कर फ्रेंच लोगों का भारत मे और कुछ बाकी न रहा। पोर्चुगीजों के कब्जे में भी समुद्र के किनारे-किनारे मिर्फ दस-पाँच मील जमीन रह गई। अँगरेज़ों ने कहा, "कुछ हर्ज नहीं। इन लोगों के पास इतनी ज़मीदारी बनी रहने दो। इससे हमारा कुछ नहीं बिगड़ सकता।" अब अंगरेजों को अपना बल विक्रम और प्रभाव बढ़ाने में रोकने वाला कोई न रहा—फ्रेंच, पोर्चुगीज, डच सबने उनके लिए रास्ता साफ कर दिया। अँगरेजो की महिमा बढ़ने लगी। व्यापार-वृद्धि के साथ-साथ राज्य वृद्धि भी होने लगी। एक के बाद दूसरा प्रान्त उनका वशवर्ती होता गया। क्लाइव ने अँगरेजी राज्य की नींव और भी मजबूत कर दी। वारन हेस्टिग्ज ईस्ट इंडिया कम्पनी के पहले गवर्नर-जनरल हुए। उन्ही ने सबसे पहले भारतवासियो की रीति, रस्म और स्वभाव आदि का ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश की। उस समय भारतवामी बोझा ढोनेवाले पशुओं के समान समझे जाते थे । उनके देश में कदम रखना सिर्फ रुपया कमाने के लिए ही ज़रूरी समझा जाता था। खैर । वारन हस्टिग्म ने कहा कि जिन लोगो से और जिन लोगो के देश से हमे इतना काम है उन पर, जहां तक हमें कोई हानि न पहुँचे, अच्छी तरह शासन करना चाहिये। परन्तु सुशासन की योग्यता आने के लिए भारतवामियों का इतिहास, विश्वास, धर्म, साहित्य आदि का ज्ञान होना जरूरी समझा गया । अतएव वारन हेस्टिग्ज ने अपने अधीन कर्मचारियो का ध्यान इस ओर दिलाया और मर विलियम जोन्स ने पहले-पहल संस्कृत सीखना आरम्भ किया। सर विलियम बंगाल की 'मुप्रीम कोर्ट के जज थे। उन्हीन 1784 ईसवी में बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की और हम लोगो के धर्म-शास्त्र का अध्ययन आरम्भ किया। क्योकि बिना धर्म-शास्त्र के ज्ञान के भारतवासियों के मुक़द्दमों का फैमला करने में अँगरेज़ जजों को बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ता था और दत्तक आदि लेने का विषय उपस्थित होने पर वारन हेस्टिग्ज को पण्डितों की शरण लेनी पड़ती थी। सर विलियम जोन्स ने किम तरह संस्कृत सीखी, इस पर एक लेख पहले ही लिखा जा चुका है। इस काम में उन्हे सैकड़ों विघ्न बाधाये हुई। पर सबको पार करके सर विलियम ने, मतलब भर के लिये, संस्कृत का ज्ञान प्राप्त ही कर लिया। अरबी और फारमी तो वे इंगलैंड ही से पढ़कर आये थे। संस्कृत उन्होंने यहाँ पढ़ी। पूर्वी देशों की भाषाओं में से यही तीस भाषायें, साहित्य के नाते, उच्च और बड़े काम को समझी जाती हैं । सर विलियम ने पहले मनुस्मृति का अनुवाद किया । यह अनुवाद 1790 ईसवी में छपा । इससे बड़ा काम निकला । अँगरेज जजों को भारतीय पण्डितों की जो पद-पद पर सहायता दरकार होती थी उसकी जरूरत बहुत कम रह गई। भारतवासियों को अपने धर्म-शास्त्र के अनुसार न्याय कराने में तब सुभीता हो गया। इसके बाद संस्कृत-नाटकों का नाम सुनकर सर विलियम जोन्स ने नाटकों का