यीरप में विद्वानों के संस्कृत-लेख और देवनागरी लिपि /61 बनारसी पण्डित की सहायता से लिखा हो । ऐसी शंका के लिए जगह अवश्य है । काशी में, विशेष करके कालेज में, पण्डितों के बीच रहकर उन्होंने पण्डितों से महायता ली हो तो कोई आश्चर्य की बात नही । परन्तु वालेंटाइन माहब की संस्कृत पण्डितों की जमी लच्छेदार संस्कृत नहीं। वह इतनी सरल और स्वाभाविक है कि प्रकाण्ड पाण्डित्य की गन्ध उसमें जरा भी नही आती। वह पुकार पुकार कर कह रही है कि मैं काशी के पण्डितों की करामात नहीं। इस भीतरी साध्य के सिवा हमारे पास पण्डित मथुराप्रसाद मिश्र का भी साक्ष्य है। वे बालेंटाइन साहब के समय ही से बनारस कालेज में थे और बालेंटाइन साहब ही की सूचना के अनुमार 'लघु कौमुदी' का अनुवाद उन्होने हिन्दी में किया था । इस प्रबन्ध के लेखक ने उनके मुख से सुना था कि बालेंटाइन साहब अच्छे संस्कृतज्ञ ही न थे, किन्तु अच्छे संस्कृत-वक्ता और अच्छे सस्कृत-लेखक भी थे। 1844 ईसवी में जे० म्यूर माहब बनारस-कालेज के प्रधानाध्यापक थे। वे भी संस्कृत में अच्छी योग्यता रखते थे। यह वात उनके एक ग्रन्थ से प्रमाणित है । यह ग्रन्थ बड़ी-बड़ी पंच जिल्दों में है । इसका नाम है-"Original Sanskrit Texts on the Origin and History of the People of India, their Religion and Institutions." इसके सिवा बालेंटाइन साहब ने भी म्यूर साहब की संस्कृतज्ञता और योग्यता की गवाही दी है। अपनी 'न्यायकौमुदी' की अँगरेज़ी भूमिका में उन्होंने लिखा "Mr. Muir delivered lectures, in Sanskrit on moral and intellectual philosophy, and the sentsiments which he then inculcated have been since that time furnished topics for discussion in the College." म्यूर साहब जब संस्कृत लेक्चर द सकते थे तव वे अवश्य ही अच्छी तरह संस्कृत बोल लेते रहे होगे । यह उनकी संस्कृतज्ञता और सम्भाषणशक्ति का प्रमाण हुआ। यह बात तो डाक्टर टीबो और वीनिस साहब आदि संस्कृत विद्वानों में पाई जाती है । म्यूर साहब में एक और विशेषता थी। वे संस्कृत लिखते भी थे । गद्य ही नही, पद्य भी उनकी लिखी हुई 'मत परीक्षा' नामक एक बहुत बड़ी पुस्तक सस्कृत पद्य में है। उससे दो चार श्लोक हम नीचे उद्धृत करते है- यः पूर्वभूतवृत्तान्त: पारम्पर्येण लभ्यते स जातु प्रत्ययाहोऽस्ति जातु नास्तीति बुध्यते ।। वृत्तान्तः कश्चिदेको हिसप्रमाणः प्रतीयते ! प्रमाणवर्जितोऽन्यस्तु प्रतिभाति परीक्षणात् ।। अतोत्सुका पुरावृत्तकथा विश्वासमर्हति । न वेत्यतद्विवेकाय तद्विशेषो विचार्यताम् ।। असो कथा कदा कुत्र कस्थ वक्त्रादजायत । श्रोतारश्चादिमास्तस्याः कीदृशाः कति चाभवन ।। इन पद्यों की रचना कह रही है कि ये म्यूर साहब ही के लिखे हुए हैं। अतएव
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