योरप के कुछ संस्कृतज्ञ विद्वान् और उनकी साहित्य-सेवा / 69 मिहिर पर उन्होंने टिप्पणियाँ लिखी और मीमासा और ज्योतिष-वेदाङ्ग' पर निवन्ध । फ्रांस के प्रसिद्ध संस्कृतज्ञ, एम० शेजी का उल्लेख हम ऊपर कर आये हैं । योरप में संस्कृत के अध्यापक होने का गौरव मबसे पहले आपको ही मिला । आप 1814 से 1832 ईमवी तक सस्कृत पढ़ते रहे । आपके बाद यह पद यूजिन बर्नफ माहब को मिला। वर्नफ साहब ने संस्कृत-साहित्य मे बड़ा काम किया । उनका जन्म 1801 ईमवी में हुआ था। 1824 मे पेग्मि से वे पदवीधर होकर निकले । दो माल बाद प्रसिद्ध पण्डित लासन के साथ उन्होंने पाली भाषा पर एक महत्त्वपूर्ण निबन्ध लिखा । उन्हीं ने योरस को बौद्ध धर्म का परिचय कराया । भारतवर्ष के इतिहास मे बौद्ध काल की प्रधान घटनाओं का समय उन्ही ने निश्चित किया। 'भागवत-पुगण' का भी सम्पादन करके उसे उन्होंने प्रकाशित किया। 50 वर्ष की अवस्था मे ही उनकी मृत्यु हो गई . जर्मनी में रह कर जिन विद्वानों ने प्राच्य माहित्य का अनुशीलन किया और नाम पाया उनमें सबसे अधिक प्रसिद्धि वेबर माहब की हुई। वेवर माहब मैक्समूलर के समकालीन थे। उनका जन्म 1825 ईमवी में हुआ था और मृत्यु 1901 मे। उन्होंने यजुर्वेद का सम्पादन किया और बर्लिन के राजकीय पुस्तकालय के हस्तलिखित म-कृत- ग्रन्थों की सूची तैयार की। 1850 से 1885 ईसवी तक 35 मालो मे, उनका 'Indis- chen Studien' नामक ग्रन्थ, 17 जिल्दों में, प्रकानित हुआ। उनके पढाये हुए शिष्यों मे योग्प और अमरीका के अनेक प्राच्य-विद्या-विशारद है। उनकी प्रमिद्धि भारतीय साहित्य के इतिहास में भी हुई है। पाणिनि के मस्कृत-व्याकरण का एक बड़ा अच्छा सस्करण बोटलिक माहब ने निकाला । गय साहब के माथ मिलकर उन्होंने एक संस्कृत-कोष का भी सम्पादन किया। यह कोप अभी तक योग्प मे अद्वितीय गिना जाता है । गोल्डस्टकर महब ने पाणिनि के स्थिति-काल पर एक बड़ा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है । भारतवर्ष के शिक्षित समाज में अब प्रोफ़ेसर जेकोबी का भी नाम प्रसिद्ध हो गया है । जेकोबी साहब ने कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो की रचना की है। जैन-साहित्य के आप अच्छे पण्डित गिने जाते हैं । उनका किया हुआ जैन मूत्रों का अनुवाद प्राच्य धाम्मिक ग्रथ- माला में प्रकाशित हुआ है। इनके सिवा और भी अनेक योरोपीय विद्वानों को संस्कृत का अच्छा ज्ञान है। इंडिया आफ़िस लाइब्रेरी के अध्यक्ष डाक्टर रीनहोल्ड रोस्ट, कलकत्ता-विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जाली, जो टगोरला लेक्चरर नियुक्त हुए थे, जेम्स राबर्ट बालेटाइन जो बनारस के गवर्नमेंट कालेज के प्रधान अध्यापक थे, सर एडविन आर्नल्ड, जिन्होने 1896 में, 'चौरपञ्चाशिका' का 'पद्यात्नक अनुवाद प्रकाशित किया था-ये सभी संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। यहाँ तक हमने सिर्फ कुछ योरोपीय विद्वानो का परिचय-मात्र दिया है। [अक्टूबर, 1920 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित।]
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/७३
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