पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/७५

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संस्कृत-साहित्य-विषयक विदेशियों को ग्रंथ-रचना /71 वाले ढूंढ़ने से भी शायद इने ही गिने मिलें। जिले के जिले और प्रांत के प्रांत आप ढूंढ डालिए, शायद ही कहीं किमी सौभाग्यशाली के यहाँ ऋग्वेद-संबंधी सभी ग्रंथ मिल सकें। वेदों, ब्राह्मणों, उपनिषदों, आरण्यकों और गृह्य-सूत्रों के नाम तक लोग भूल गये । उन्हें अपने संग्रह में रखना और उनका अध्ययन-अध्यापन करना तो बहुत दूर की बात है। हाँ, जो ग्रंथ विदेशों में पहुंच गये-विशेष करके जर्मनी, इंगलैंड और फ्रांस में -उनकी क़दर अलबत्ते वहां हुई। राजकीय संपर्क के कारण कुछ अंगरेजों ने, संस्कृत भाषा मीख कर, उसमें विद्यमान ग्रंथ-रत्नों के महत्त्व का ज्ञान जब प्राप्त कर पाया तब उन्होने उस बात को औरो पर भी प्रकट किया । इस कारण जिज्ञासा बढ़ी और अन्यान्य पश्चिमी देशो के विद्वानों ने भी संस्कृत मीख कर ग्रंथ-संग्रह आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे इस विषय की चर्चा अधिक होती गई । फल यह हुआ कि कुछ विद्वानो ने संस्कृत भाषा के महत्त्वपूर्ण और दुष्प्राप्य ग्रंथो को अपनी देश-भाषाओ में प्रकाशित करना आरंभ विया । अनेक ग्रथों के संस्करण, टीका-टिप्पणी सहित, उन्होंने प्रकाशित किये। अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी उन्होने कर डाले । उन पर अनेक आलोचनात्मक और तुलनामूलक पुस्तके मी उन्होंने लिख डालीं। उनकी विशेषताये समझाने के लिए भी उन्होने बहुत ग्रंथ- रचना की, यह सब ग्रंथ-गशि अब इननी हो गई है कि यदि वह सबको मव एक स्थान पर एकत्र की जाय तो एक बहुत बड़ा पुस्तकालय हो जाय । इन विदेशी विद्वानो ने अधिक ग्रथ-रचना और अधिक ग्रंथ-प्रकाशन वैदिक साहित्य के संबंध ही में किया है । पर और विषयो पर भी इन्होंने लेखनी उठाई है। आयुर्वेद, ज्योतिष, कोण, काव्य, स्मृति-यहाँ तक कि इस देश की कथा-कहानियो की ओर भी इनकी दृष्टि गई है । इनके इस कार्य से भारत को बहुत लाभ पहुंचा है। पश्चिमी देशों को हमारी प्राचीन सभ्यता और शिक्षा का मबसे अधिक ज्ञान इन्ही विद्वानो ने कराया है । इस विषय में जर्मनी के विद्वान् हमारी कृतज्ञता के सबसे अधिक पात्र हैं। यहाँ पर हम इन पश्चिमी पंडितो के कुछ गौरव-पूर्ण ग्रंथो का संक्षिप्त परिचय देते है। पाठक देखेंगे कि इन्होंने कितना काम किया है, कैसे-कैसे ग्रंथ लिखे है और कितने अनमोल ग्रंथो को लोप होने से बचाया है । कोष (1) सेंट पीटर्सबर्ग (पेट्रोग्रेड) मे प्रकाशित संस्कृत-कोष । इसका नाम है-The Sanskrita Worterbuch or The St. Petersburg Lexion. SH*T HTG 31701 बोटलिक और रूडल्फ़ रोट ने किया है। बड़ी-बडी सात जिल्दो में है। अद्भुत ग्रंथ है। बड़े महत्त्व का है। अनेक वर्षों के परिश्रम का फल है । संस्कृत-शब्दों की उत्पनि. उनके भिन्न- भिन्न अर्थ, उनके प्रयोग के उदाहरण इत्यादि के दवा और भी बहुत सी बातों का विचार इसमे किया गया है । संस्कृत भाषा और संस्कृत-साहित्य के अध्ययन में इस कोष से बड़ी सहायता मिल सकती है । यह अब अप्राप्य सा है। यदि कहीं होगा तो इसका मूल्य हजार बारह सौ रुपये से कम न होगा। इसकी एक कापी हमने कायमगंज में पंडित परमानंद चतुर्वेदी के पुस्तकालय में देखी थी। उन्होंने उसे बड़ी खोज के अनंतर रूस से प्राप्त किया था।