1 संस्कृत-साहित्य-विषयक विदेशियों की ग्रंथ-रचना /73 (17) गीतगोविंद का अनुवाद । कोर्टीलियर (Courtillier) का किया हुआ। लीवाई (Levi) की भूमिका-सहित । मूल्य 6 रूपये । (18) नलोदय-काव्य । प्रज्ञाकर मिश्र की लिखी टीका-युक्त । टिप्पणियों और अनुवाद-महित । एफ० बेनारी (Benary) द्वारा अनुवादिन और संपादित । 1830 ईसवी में छपा । दुष्प्राप्य । मूल्य 20 रुपये । (19) मयूर कवि के काव्य और बाण का चंडीशतक अंगरेजी अनुवाद । नोटिम, भूमिका आदि सहित । क्वकनवास (Quackenbos) डाग मपादित । मूल्य 10 रूपये । (20) रुद्रट-कृत शृंगारतिलक और म्य्यक-कृत महृदय-लीला । नोट्स और भूमिका-महित । आर० पिशल द्वारा संपादित । मूल्य 12 रुपये । (21) 'कथाकौतुक', श्रीवर्गवर्गचत । मृल और अनुवाद । शिमिट-संपादिन । जर्मनी में प्रकाशित । मूल्य 15 रूपये । (22) 'कथासरित्मागर', मोमदेव-भट्ट-विरचित। दो जिल्दो में। एच० ब्राकहासे नारा संपादित । जर्मनी मे छपा । मूल्य 20 रुपये । (23) 'गवणावहो महाकाव्य मनुबंध विरचित । दो भागो मे । मूल प्राकृत और अनुवाद-सहित । गोल्डस्मिट-द्वारा संपादित और अनुवादित । मूल्य 60 रूपये । इनके सिवा और भी अनेक काव्य, नाटक, चंप, भाण, प्रहमन आदि इगलैंड, अमेरिका, जर्मनी और फ्रांम मे संपादित और प्रकाशित हुए है। वेद (24) ऋग्वेद-संहिता, मायनभाप्य-महित । भट्ट मोक्षमूलर द्वारा सपादिन । चार जिल्दो में । विलायत में छपी । मूल्य 240 रुपये । (25) ऋग्वेद-महिता, अध्यापक एक लडविग के अनुवाद और विस्तृत सूची- सहित । छ जिल्दो में । जर्मनी में प्रकाशित । मूल्य 150 रूपये । (26) ऋग्वेद, एच० ग्रासमन का अनुवाद । वैदिक छदो के विवेचन तथा अन्य महत्त्वपूर्ण विषयो के महित । दो जिल्दो मे । जर्मनी में छपा हुआ। मूल्य 50 रुपये । (27) ऋग्वेद, ओल्डनवर्ग-द्वारा मंपादित । जर्मनी। 2 जिल्दो मे । मूल्य 50 रुपये। (28) ऋग्वेदीय कोष, ग्रासमन-कृत । दुष्प्राप्य । जर्मनी का संस्करण । मूल्य 60 रुपये। (29) ऋग्वेद-प्रातिशास्य, अँगरेजी-अनवाद-महिन। सपादक, भट्ट मोक्षमूलर । मूल्य 70 रुपये। इम वेद के और कितने ही सस्करणो का उल्लेख म छोड़े देते है। (30) कृष्ण-यजुर्वेद, तैत्तिरेय-संहिता। टिप्पणी-सहित । वेवर साह्व-द्वारा संपादित । दो जिल्दो में । मूल्य 25 रुपये । (31) वही, अर्थात् नंबर (30) अंगरेजी-अनुवाद और भाष्य-सहित । दो जिल्दों में। ए० बी० कीथ साहब की कृति । अमेरिका में प्रकाशित । मूल्य 25 रुपये ।
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/७७
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