74 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली । (32) कृष्ण-यजुर्वेद (काठक-शाखा) संपूर्ण । चार भागों में । जर्मनी में छपा हुआ। मूल्य 60 रूपये। (33) कृष्ण-यजुर्वेद (मैत्रायणी संहिता) सूत्र-ब्राह्मण-समेत । टिप्पण, सूची, भूमिका-सहित । संपादक, एल० बी० श्रोडर (Schroeder) चार भागों में । जर्मनी में प्रकाशित । मूल्य 100 रुपये। (34) तैत्तिरेय प्रातिशाख्य । मूल, भाष्य और अँगरेज़ी-अनुवाद-सहित । अनुवादक, डब्लू० डी० ह्विटने । अमेरिका में प्रकाशित । मूल्य 30 रुपये । (35) शुक-यजुर्वेद । अँगरेजी अनुवाद । ग्रिफिथ साहब का । मूल्य 4 रुपये । (36) सामवेद । मूल, सूची, टिप्पणी और अनुवाद-शहित । संपादक टी० बेनफी। जर्मनी का छपा । मूल्य 75 रुपये । (37) वही, अर्थात् नंबर (36) केवल मूल और अनुवाद । बेनफी-कृत । मूल्य 50 रुपये। (38) सामवेद, मूल मात्र । स्टेसन-द्वारा संपादित । मूल्य 10 रूपये । (39) अथर्ववेद-संहिता । पिप्पलाद-शाखा। महाराज काश्मीर के संग्रह में रक्षित, भूर्जपत्र पर लिखित प्रति से लिये गये फोटो चित्रों का प्रतिरूा । मपादक, ब्लूमफ़ील्ड और गावें । तीन भागो में प्राय अप्राप्य । मूल्य 30 पौड, अर्थात् 450 रुपये। (40) अथर्व-वेद । अंगरेजी-अनुवाद । समालोचना और नोट्स-सहित । दो भागों में । अध्यापक ह्विटने की कृति । इसमें अन्य महत्त्वपूर्ण सामग्री भी है। मूल्य 42 रूपये । इम वेद के और भी अनेक संस्करण पाश्चात्य पडितो ने प्रकाशित किये है । इसी तरह मामवेद के भी। अन्य वैदिक ग्रंथ (41) ऐतरेय ब्राह्मण, मायन-भाष्य-सहित। संपादक, टी० आफरेट (Aufre- cht) । जर्मनी का छपा । मन्य 25 रुपये । (42) आश्वलायन-गृह्यमूत्र । संपादक, स्टेजलर । मूल्य 10 रूपये । (43) बृहद्देवता । अंगरेजी-अनुवाद और नोट्स सहित । अनुवादक, ए० ए० मेकडानल । दो भागों में । मूल्य 25 रुपये। (44) हिरण्यकेशी गृह्यसूत्र । वाइना में प्रकाशित । मूल्य 25 रुपये। (45) बौधायन-पितृमेधसूत्र । भाष्य और अंगरेजी-अनुवाद-सहित । सी० एच० गव-कृत । मूल्य 12 रुपये। (46) मानवकल्पसूत्र । कुमारिल स्वामी-कृत । व्याख्या सहित । गोल्डस्टुकर की विस्तृत भूमिका से युक्त । मूल्य 125 रुपये । (47) आपस्तंबीय गृह्यमूत्र । वायना में प्रकाशित । मूल्य 15 रुपये। (48) पारस्कर गृह्यमूत्र । नोट्म और अंगरेजी अनुवाद-सहित । जर्मनी में प्रकाशित । मूल्य 10 रुपये। (49) शतपथ ब्राह्मण । अंगरेजी-अनुवाद । जे० एग्लिग-कृत । पाँच जिल्दों में । मूत्य 75 रुपये।
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/७८
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