पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/८१

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जर्मनी में संस्कृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन /77 पहले वेबर और पिशल करते थे। वेबर ने 53 वर्ष तक (1848 से 1901 ईसवी तक) अध्यापन कार्य किया। उनके पहले इस पद पर अध्यापक वॉप थे। तुलनात्मक भाषा- विज्ञान के प्रथम आचार्य वॉप ही थे। वेबर ने मंस्कृत-साहित्य की प्राय प्रत्येक भाषा का जान-मंपादन किया था। इसी से वे मंस्कृत-साहित्य का इतिहास लिखने में समर्थ हुए । उनका यह इतिहास अब तक बड़े आदर की दृष्टि से देखा जाता है। प्रशिया के गजकीय पुस्तकालय में संस्कृत और प्राकृत भाषाओं की जितनी हस्तलिखित पुस्तकें हैं और कई हजार होंगी- -- उनका एक विस्तृत सूचीपत्र वेबर ने तैयार किया। उसमें उन्होने प्रत्येक पुस्तक का बहुत कुछ परिचय भी दिया। उनका यह मूचीपत्र बड़ी-बड़ी चार जिल्दों में छपा है और संस्कृत के प्रेमियों के लिए अनमोल है। पिशल ने केवल 7 वर्ष अध्यापना की। 1908 ईमवी में उनकी मृत्यु, मदराम में, हुई। उन्होने कालिदास के 'शाकुनल'-नाटक पर एक आलोचनात्मक उत्तम पुग्नक लिन्धी। 1903 ईमवी में उन्होंने अपना प्राकृत-व्याकरण प्रकाशित किया, जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट विदित होता है कि उन्होंने प्राकृत भाषाओं का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त नि । वैदिक ग्रंथों का भी अध्ययन उन्होने किया था और वैदिक साहित्य की भिन्न-भिन्न शाकानों पर जो ग्रथ (Vedischi Studien) उन्होंने लिखा है बूब गवेपणा- पूर्ण है और तीन जिन्दों में प्रकाशित हुआ है । पिशल के बाद उनकी जगह लूडर्स को मिली। इसके पहले ही तुर्किस्तान के खंडहर खोदने पर सैकड़ो प्राचीन पुस्तके, वस्तुये, सिक्के, लेब आदि मिल चुके थे । उनकी प्राप्ति ने भारत ही के नही, जो और देश तुर्किस्तान के आसपाम थे उन मबके भी, इतिहास, साहित्य और धर्म आदि से संबंध रखनेवाली नई-नई बातो का पता बता दिया। अतएव गवेषणा का द्वार पहले से बहुत अधिक विस्तृत हो गया। उससे लाभ उठाकर अध्यापक लूडर्स ने अनेक महत्त्वपूर्ण लेग्व लिम्वे । वे गव बलिन की एक सस्था (प्रशियन अकाडमी आफ़ सायंस) के जर्नल में निकले। इसके सिवा लूडर्स ने पुगतत्त्व- विषयक और भी कितने ही काम किये है। प्राचीन उत्कीर्ण लेखों के संपादन और प्रकाशन से भी उन्होने विशेष कीर्ति लाभ किया है । डॉक्टर ग्लासनैप और नोबल के कार्य का अभी आरंभ-काल ही है । तिस पर भी इन दोनो ने संस्कृत-काव्य और अलंकार-शास्त्र पर कितने ही लेख, बड़े मार्के के, लिख कर प्रकाशित किये हैं। अब गाटिजन के विश्वविद्यालय का हाल सुनिए। वहाँ संस्कृत भाषा की अध्यापना का काम ई० सिग कर रहे हैं। डॉक्टर डब्लू० सीजलिंग नाम के एक जर्मन पंडित बलिन में रहते हैं। उन्हें भी पूर्वी देशों की भाषाओं से बड़ा प्रेम है। वे और सिग दोनों मिल कर तुर्किस्तान में प्राप्त हुए कुछ लेखा और ग्रंथों आदि का संपादन-कार्य कर रहे हैं । ये लेख एक अज्ञात भाषा में हैं । अध्यापक लूडर्स की राय है कि यह अज्ञात भाषा साकिश नाम की भाषा है । गार्टिजन में सिग के पहले एच् ओल्डनबर्ग संस्कृताध्यापक थे। उनकी विद्वत्ता बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। वेद और पाली भाषा के वे अपूर्व पंडित थे। वैदिक ग्रंथों पर उनका लिखा हुआ ग्रंथ देख कर उनके अगाध पांडित्य का पता लगता है।