पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/८२

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78 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली - ओल्डनबर्ग ने गौतम बुध का जो चरित लिखा है वह बड़े आदर की चीज़ है । इस ग्रंथ के निकलने के पहले बुध को लोग एक कल्पित व्यक्ति समझते थे। ओल्डनबर्ग के पहले गार्टिजन में कीलहान साहब संस्कृत पढ़ाते थे। बे वही कीलहान हैं जो बहुत समय तक दक्षिणी भारत में संस्कृत के अध्यापक थे। ये नामी वैयाकरण थे। बहुत शुद्ध संस्कृत बोलते और लिखते थे। इनका बनाया हुआ संस्कृत-व्याकरण भारत के कितने ही कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक नियत है। इनका प्रकाशित किया हुआ व्याकरण-महाभाष्य का जो संस्करण है और व्याकरण पर जो लेख लिखे हुए हैं उनसे सूचित होता है कि इस शास्त्र में इनकी गति अप्रतिहत थी। बहुत से भारतीय उत्कीर्ण लेखों का भी संपादन और अनुवादन करके कीलहान ने अपनी संस्कृतज्ञता और गवेषणा की गंभीरता का परिचय दिया है। बॉन-विश्वविद्यालय के अध्यापक आफ़ रेट ने हस्तलिखित संस्कृत-ग्रंथो का एक सूचीपत्र, बड़ी-बड़ी तीन जिल्दों में, प्रकाशित करके अपना नाम अमर कर दिया है। उनका संपादित ऋग्वेद भी बड़े महत्त्व का ग्रंथ है । आफरेट के बाद उनकी जगह एच० जैकोबी को मिली। ये, कुछ ही समय पूर्व, भारत गये थे और वहाँ बहुत समय तक रहे थे। वहां उनका बड़ा आदर हुआ था। इन्होंने अपने कल्पसूत्र के संस्करण में पहले पहल यह प्रमाणित किया कि जैन धर्म का उद्गम बौद्ध धर्म से नहीं हुआ। इन्होंने यहां तक सिद्ध कर दिखाया कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से भी पुराना है। इन्होने जैनों के साहित्य का बड़ा गहरा अध्ययन किया। इस कारण प्राकृत भाषाओं से भी इनका विशेष परिचय हो गया। भाषा-शास्त्र तथा भारतीय काव्य और अलंकार-शास्त्र पर भी जैकोबी साहब ने कितने ही महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित किये हैं। लेपज़िक के विश्वविद्यालय में पहले अध्यापक ब्राकहास संस्कृत पढ़ाते थे। उन्होने 'कथासरित्सागर' का अनुवाद जर्मन भाषा में किया। उनके बाद उसकी जगह ई० विनडिश को मिली। इन्होने बौद्ध धर्म पर, बेदों पर और भारतीय नाट्यकला पर अनेक लेख लिखे और कितनी ही नई-नई बातें खोज निकाली। इन्होंने एक अभूतपूर्व ग्रंथ लिखा। वह है संस्कृत भाषा-शास्त्र । इनके इस ग्रंथ को विद्वान् इस विषय का सबसे अधिक प्रामाण्य ग्रंथ समझते हैं। अब इनकी जगह पर अध्यापक हर्टल काम करते हैं। इन्होंने पंचतंत्र का अनुवाद करके उसे अपनी विवेचनात्मक आलोचना के साथ प्रकाशित किया है। ब्रेमलाऊ में हिलेब्रांट साहब संस्कृत के नामी विद्वान् हैं। उन्होंने वैदिक साहित्य पर कई लेख प्रकाशित किये हैं। उनमें अग्नि, वायु, वरुण, आदित्य वेद के कल्पित देवताओं का विवेचन करके उनकी तुलना अन्य देशो के देवताओं से की गई है। हिलेबांट के पहले स्टेजलर साहब, बेसलाऊ में, संस्कृताध्यापक थे । उन्होंने धर्म-शास्त्र पर बहुत कुछ लिखा है और कालिदास के 'मेघदूत', 'कुमारसंभव' 'रघुवंश' का अनुवाद किया है। मारवर्ग में अब तक ग्यल्डनर साहब संस्कृत की शिक्षा देते थे। वेदों और जेंद- अवस्ता के ये नामी पंडित हैं । इन विषयों में इनकी बात विद्वन्मंडली में, बिना किंतु-परंतु -