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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/८४

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80/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली कुछ लिखा है। बहुत से अनुवाद भी उन्होंने किये हैं। इस विश्वविद्यालय में पहले नीजलिम साहब संस्कृत पढ़ाते थे। अब वे यरलांजन को बदल गये हैं। अथर्ववेद-संबंधी ग्रंथो पर उन्होंने अनेक लेख लिखे है और बहुत कुछ टीका-टिप्पणी की है । जेना के विश्वविद्यालय के अध्यापक कैपलर ने संस्कृत और जर्मन भाषा का एक कोश बनाया है। उन्होने 'शिशुपालवध' और 'किरातार्जुनीय' का अनुवाद, जर्मन भाषा में, किया है और जर्मन भाषा की कुछ कविताओं का अनुवाद संस्कृत में । रोस्टाक और गीसन के विश्वविद्यालयों में संस्कृत-शिक्षा का अभी तक प्रबंध नहीं हो पाया। इस इतने ही विवरण से यह बात अच्छी तरह जानी जा सकती है कि जर्मनी के निवासी कितने विद्याव्यमनी हैं: संस्कृत भाषा और मंस्कृत-माहित्य ही के नहीं प्राकृत भाषाओ तक के वे कितने प्रेमी हैं; और इन विषयो का अध्ययनाध्यापन उन्होने अपने प्राय मभी विश्वविद्यालयों में कहा तक मुलभ कर दिया है। जिन अध्यापको का उल्लेख इस लेख में किया गया है उनके सिवा और भी अनेक जर्मन-पडित संस्कृत भाषा के ज्ञाता है । उन्होंने अनेक ग्रथों, लेखों और अनुवादों की रचना की है। इन समस्त जर्मन विद्वानो और लेखो आदि का यदि मग्रह किया जाय तो एक बहुत बडा पुस्तकालय हो जाय। [मई, 1923 में 'श्रीयुत विनायक विश्वनाथ वैद्य' छद्म नाम से प्रकाशित । 'साहित्य-संदर्भ' में संकलित ।] म.दि.१०-4