पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/८७

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कोरिया और कोरिया-नरेश / 83 जापान के युद्ध का यह भी एक कारण हुआ। इस युद्ध में जापान विजयी हुआ। चीन के साथ उसकी सन्धि हुई । सन्धि में चीन ने कोरिया पर अपने प्रभुत्व का दावा छोड़ा। तब से कोरिया ने जापान की रक्षा में रहना क़बूल किया। जापान की सहायता मे, कोरिया में, इन सात आठ वर्षों में बहुत कुछ सुधार हुआ है। चीन से सन्धि-पत्र पर दस्तखत कराके जापान जब निश्चिन्त हुआ, तब उसने कोरिया-नरेश से कहा कि सर्वसाधारण के सामने और पितरों के पवित्र मन्दिर में, वे चीन की प्रभुता परित्याग करने की शपथ करें। कोरिया-नरेश बड़े संकट में पड़े। परन्तु कर क्या सकते थे ? जापान का बल, जापान का रण-कौशल वे देख चुके थे। इसलिए उमका आदेश उन्हें मानना ही पड़ा। 1895 के जनवरी की 8 तारीख इस शपथ के लिए नियत हुई । नरराज के महलों से लेकर पितृ-मन्दिर तक कोरिया के अश्वारोही सड़क पर दोनों ओर खड़े हुए। किस तरह ? अपना और घोड़े का मुंह दीवारों की तरफ़, अपनी पीठ और घोड़े की दुम नरेश की तरफ सड़क की ओर ! कुछ देर में राजप्रासाद से अनेक पताकाधानिकले और मन्दिर को चले गये। उनके पीछे कोरिया-नरेश का सेवक- समूह, पीली पोशाक और पीली टोपी पहने बाहर आया। अनन्तर नरेश का रेशमी लाल रंगवाला छाता देख पड़ा। उसके बाद चार आदमियों के कन्धे पर रक्खी हुई एक कुरसी में कोरिया-नरेश पधारे । आप, सदा अपनी प्रसिद्ध राजसी कुरसी पर, 16 आदमियों के कन्धों के ऊपर, निकला करते हैं; परन्तु इस अवसर पर आप उस ठाठ से नहीं निकले । आपका चेहरा जर्द था: मुंह से नाउम्मेदी टपक रही थी। उनके पीछे युवराज, फिर मन्दारिन, फिर सेना विभाग के अधिकारी, और अन्त में दूसरे लोग अपने अपने घोडों और खच्चरो पर बाहर निकले। इस प्रकार नरेश ने देव-मन्दिर में जाकर चीन का सम्बन्ध त्याग करने की, जापान की प्रभुता स्वीकार करने की, और जापान की आज्ञा को सिर पर रखकर तदनुकूल कोरिया में सब प्रकार के संशोधन करने की कसम खाई। इस प्रकार चीन-जापान के युद्ध रूपी नाटक का यह आखिरी खेल ख़तम हुआ। श्रीमती बिशप नाम की एक अँगरेज़ विदुपी ने 'कोरिया और उसके पड़ोमी' (Korea and it Neighbours) नामक एक पुस्तक लिखी है। उसमें उन्होंने कोरिया का अच्छा हाल लिखा है। वे कहती है कि कोरिया की महारानी की उम्र इस समय कोई 42 वर्ष की होगी। वे बहुत दुबली पतली हैं, परन्तु देखने में बुरी नहीं मालूम होतीं। उनके केश सिवार के समान हैं; कुछ काले हैं, कुछ भूरे । उनका रंग पीलापन लिये हुए है, मुंह पर वे मुक्ता-चूर्ण मलती है, जिससे उनके मुख पर एक प्रकार का लावण्य आ जाता है। उनको देखने से मालूम होता है कि वे समझदार हैं। जब वे बात-चीत करती हैं, और वह बात-चीत उनको अच्छी लगती है, तब उनके चहरे पर ऐसा रंग आ जाता है, जिसे सुन्दरता में दाखिल कर सकते हैं। कोरिया-नरेश को जापान ने सभ्यता सिखलाना शुरू कर दिया है । दो वर्ष आपने कोरिया में खनिज विद्या का एक कालेज बनवाने का विचार किया था। इसके प्रबन्धनकर्ता कोरियावाले ही होने वाले थे, परन्तु अध्यापक और यंजिनियर फ्रांस से बुलाने का इरादा था। नहीं मालूम यह कालेज बन गया या नहीं।