पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/८९

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तिब्बत - तिब्बत की ऊँचाई समुद्रतल से 14,501) फुट है । उसके उत्तर में क्यूलन और दक्षिण में हिमालय-पर्वत है । पृथ्वी पर जितने देश हे तिब्बत की बगबर एक भी ऊँचा नही । उसे पर्वतमय कहना चाहिए। उममे पहाड़ियों और पर्वन श्रेणियो की बड़ी प्रचुरता है। बर्फ से ढकी हुई हिमालय की चोटियाँ चारो ओर गगन-चुम्बन करती है। यह देश इतना बीहड़ है कि इसके रास्ते निहायत ही खगव है। इससे प्रवास करने में बड़ी कठिनाई पड़ती है। तिब्वत के लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है। वे दूसरे देशवालो को अपने यहां नही आने देते और न कोई उनमे मम्बन्ध रखना चाहते है । इसी कारण परकीय देश वालों का निब्बत-सम्बन्धी बहुत कम ज्ञान है। तिब्बत की राजधानी लामा नगर है । लामा में दो पुरुप सर्व-प्रधान हैं । वे लामा कहलाते हैं। एक लामा राज्य-मम्बन्धी है. दूसरा धर्म-मम्बधी । पिछले लामा का नाम दलाय लामा है। इम लामा का दर्शन अन्य देश वालो के लिए बहुत ही दुर्लभ है। तिब्बत में जितने महन्त, पुरोहित या धर्माध्यक्ष हैं मव लामा कहलाते है। तिब्बत जाने में अनेक कष्ट, कठिनाइयां और बाधाये है । एक तो पथरीला और जगली देश, दूसरे चोर और लुटगे की अधिकता. तीमरे वहां न जाने की प्रतिबन्धकता, चौथे जाड़े का प्राचुर्य. तथापि आज तक बहुतरे योरप-निवामी और दो तीन हिन्दुस्तानी लामा तक हो आये है और अनेक पुस्तके तिब्बत-सम्बन्धी लिखी जा चुकी है। पहले योरोपियन प्रवासी ने तिब्बत में, 1325 ईसवी मे, सफर किया। उसके बाद, और लोग वहां गये और वहाँ की अनेक बातो मे विज्ञता प्राप्त की। कुछ दिन हुए लैडर नामक एक माहब तिब्बत पधारे थे । आप पर जो जो आपत्तियाँ आई उनका वर्णन सुनने से पत्थर भी पिघल जाय । उनकी वहां बडी ही दुर्दशा हुई: उनका शरीर तक छिन्न-भिन्न कर डाला गया । तथापि वे जीते जागते वागम आये । उन्होंने अपने प्रवाम का जो वृत्तान्त लिखा है वह पढ़ने लायक है । ह्यू, नाइट गार्डन और मारखम वगैरह ने भी तिब्बत पर किताबें लिखी है; परन्तु लैडर और कप्तान व्यल्वी की किताबे बहुत मनोरंजक है। कप्तान व्यन्बी ने 1816 ईमवी में लद्दान्त्र से चल कर, उत्तरी तिब्बत होते हुए, 'पेकिन तक सफ़र किया । मई में वे लद्दाख मे रवाना हुए और दिसः र में हांगकांग के रास्ते कलकत्ते वापस आये । छ महीने तिब्बत पार करने में उनको लगे। उनकी यात्रा-सम्बन्धी कठिनाइयो का वर्णन पढ़ते वक्त रोमांच हो आता है और उनके साहस, धैर्य्य तथा कष्ट-सहिष्णुता का विचार करके चित्त आश्चर्य-सागर में डूब जाता है। चार महीने तक असबाब अपनी पीठ पर लाद कर उन को पैदल चलना पड़ा । खाने को सिवा जंगली जीवों के मांस के और कुछ उनको नसीब नहीं हुआ। कई महीने उनको मनुष्य-जाति के दर्शन नहीं हुए । -