सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तब्बत / 87 जिस समय अंगरेजी गवर्नमेंट ने सिक्किम पर अपना प्रभुत्व जमाया, उस समय पहले पहल, तिब्बत और भारतवर्ष के सम्बन्ध का सूत्रपात हुआ, एक सन्धि-पत्र लिखा गया । उस पर चीन और भारतवर्ष की गवर्नमेंट ने हस्ताक्षर किये। परन्तु इस सन्धिपत्र के नियम निर्विवाद न हुए; बहुत मी झगड़े की बातें रह गई । कुछ दिनों में याटुंग नामक नगर में तिब्बतवालों ने एक मण्डी खोली । याटुग तिब्वत की सीमा के भीतर है। वहाँ पर तिब्बत और हिन्दुस्तान, दोनों देशों के व्यापारियों को व्यापार करने की अनुमाते मिली । परन्तु सन्धिपत्र के विवादास्पद नियमों का निवटारा न हुआ। झगड़े की जड़ें बनी रहीं। उन्ही को आधार मान कर जनरल मैकडोनल्ड और कर्नल यंगहसबैंड ने ममन्य और मशस्त्र तिब्बत में प्रवेश किया। जब पहले तिब्बत मिशन ने अपना अस्तित्व प्रकट किया तब यह बात कही गई कि वह मर्वथा शान्तिमूलक है; वह अशान्ति अथवा विद्रोह का कारण न होगा । परन्तु इस मिशन ने अब विकराल रूप धारण किया है। तूना में तिब्बत वालो की जो हत्या हुई है उसने इसके शान्त स्वरूप को बिलकुल ही बदल कर और का और कर दिया है । ज्ञानसी में, इस समय, यह मिशन मका पड़ा है। इधर इसे लामा की तरफ़ आगे बढ़ने की आज्ञा मिल चुकी है, उधर तिब्बन वाले इसका अवरोध करते है। मामला टेढ़ा है । जान पडता है कि वह मिशन शीघ्र ही एक भयंकर चढ़ाई का रूप धारण करेगा। इस मिशन के सम्बन्ध इस समय पारलियामेंट में खूब वाद-विवाद हो रहा है। आमाम के भूतपूर्व चीफ़ कमिश्नर काटन माहब इस विवाद में अग्रणी है। वे इस मिशन का भेजा जाना पसन्द नही करते। इस मिशन के भेजे जाने के कई कारण बतलाये जाते है। उनमें से कुछ कारण एफ-दूसरे के विरोधी भी हैं । पहला कारण यह बतलाया जाता है कि तिब्बत वालों ने सन्धिपत्र के नियमों की पाबन्दी नहीं की, दुसरा यह कि मिशन के अफ़मरों से मिल कर झगडे की बातो को तै करने के लिए तिब्बतवालों ने अपना कोई अफ़सर नहीं भेजा; तीमरा यह कि तिब्बत वाले भीतर ही भीतर रूस से मिले हैं; चौथा यह कि तिब्बत की सीमा हिन्दुस्तान की सीमा से मिली हुई होने के कारण तिब्बत मे अँगरेजी गवर्नमेंट के स्वत्वों की रक्षा आवश्यक है । परन्तु काटन आदि विलक्षण पुरुषो का मत है कि ये कारण बहुत ही निर्बल हैं; सन्धिपत्र के नियमों का पालन होना और न होना बराबर है, तिब्बत और भारतवर्ष का व्यापार बहुत कम है: इस मिशन का भेजा जाना रूस और चीन दोनों राज्यों को पसन्द नहीं। तिब्बत के विषय में एक नई बात सुन पड़ी है। वह यह है कि कोई 20 वर्ष हुए घोमंग लोवजंग नामक एक आदमी मंगोलिया से लासा को आया। वहां वह दाबंग के मठ मे वेदान्त का अध्यापक नियत हुआ । बहुत दिनों तक उसने अपना काम बड़ी योग्यता से किया । 52 वर्ष की उम्र में वह रूस के दक्षिणी प्रान्तों में चन्दा एकत्र करने के इरादे गया। उन प्रान्तों में बहुत से बौद्ध रहते हैं । यह बात 1898 की है। इस में उसे सेंट पीटर्सबर्ग को भी जाना पड़ा। वहाँ रूसियों ने हेलमेल पैदा करके उसे अपने वश में कर लिया। उसको उसका कर्तव्य अच्छी तरह समझा दिया गया। वह रूस की तरफ़ से बहुत सी बेशकीमती चीजें दलाय लामा को उपहार में लाया । लामा महोदय उपहार