पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/९२

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88 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली से बहुत प्रसन्न हुए। घोमंग ने कहा कि यदि आप एक बार सेंटपिटर्सबर्ग पधारें तो तिब्बत और रूस में हार्दिक मैत्री हो जाय; तिब्बत की रक्षा का भार रूस अपने सिर ले ले और सम्भव है, जार महोदय किरिस्तानी मत छोड़ कर बौद्ध हो जायँ; क्योकि किरिस्तानी मत में उनका बहुत कम विश्वास है ! लामा ने इस बात को स्वीकार कर लिया; उसने प्रसाद के तौर पर कुछ चीजें भी ज़ार को भेजो; परन्तु उमका रूम की राजधानी को जाना दूसरे धर्माध्यक्ष को पसन्द नही आया। इससे दलाय लामा को वह वचार छोड़ना पड़ा। घोमंग लोबजग को किसी कारण से फिर रूम जाना पड़ा। फिर भी रूसियों ने उसे काँपे में फांमा। इस बार वह एक पत्र जार की तरफ़ से लाया जिसमे लामा महोदय को यह मुझाया गया कि वे अपना वकील सेंटपीटर्सबर्ग को भेजें, रूस से बाला बाला पत्र- व्यवहार करें और चीन की अधीनता छोड़ कर स्वतन्त्रता-पुर्वक रूम से मम्बन्ध रक्खें । लामा ने यह बात मंजूर की। मन्निद नामक एक प्रसिद्ध महन्त वकील बनाया गया । घोमग के माथ वह सेटपीटर्मबर्ग गया। उमने लामा का दस्तखती पत्र जार को दिया। लामा की बहुत मी शर्ते रूम ने मजूर कर ली और एक सन्धिपत्र भी लिखा गया. परन्तु यह बात जब चीन को मालूम हुई तब उसने रूस और तिब्बन की उस काररवाई को रद कर दिया और तिब्बत पर अपनी मख्न अप्रसन्नता प्रकट की। अतएव यह बात वही रह गई; आगे नही बढी । चीन की आज्ञा के बिना तिब्बत किमी परकीय राजा से मन्धि नहीं कर मकता। घोमंग का किम्मा कहाँ तक मच है नही मालूम । परन्तु रूम के बने हुए शस्त्र जो मिशन को युद्धस्थल मे मिले है और तिब्बतियो की युद्ध पटुता जो इम ममय देख पड़ रही है, उससे मूचित होता है कि रूम से तिब्बत का कुछ न कुछ सम्बन्ध, यदि है नही, तो रहा अवश्य है। अगस्त, 1904 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'वृश्य-दर्शन' पुस्तक में संकलित।]