पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(६६)

अब जीव धारण करने का कुछ अर्थ नहीं है, जलसमाधि लेने के निश्चय से आगे बढ़ा। ज्योंही वह उस अगाध जल में कूदने लगा, त्योंही एक वृद्ध मनुष्य जो गंभीर, विवेकशील और तेजस्वी दिखाई देता था, जल के पृष्ठ भाग पर से चलते-चलते उसी की ओर आता हुआ दीख पड़ा। उस समय वह इतना चकित हो गया कि जल में कूदने का अपना विचार बिलकुल भूल गया, और यह कोई प्रभावशाली दैवी पुरुष अपना दर्शन देने के लिये इधर आ रहा है––ऐसा समझ कर वहीं खड़ा हो गया।

वह दिव्य पुरुष आजम के पास आकर कहने लगा कि––"ये भाई! जरा धीरज धर, ऐसा अविचार मत कर, सर्वसाक्षी जगद्रक्षक परमेश्वर ने तेरा सदाचरण देख लिया है और तुझे समझाने के लिए मुझे यहाँ भेजा है। ले मेरा हाथ पकड़ और जिधर मैं जाऊँ, उधर मेरे साथ चला आ। डरने का कुछ प्रयोजन नहीं, तेरे समस्त संशयों को मैं दूर कर दूँगा। यह सुनते ही आजम उसके साथ चलने लगा। जब वे उस तड़ाग के मध्य भाग में पहुँचे तो देवदूत पानी के भीतर घुसा। आजम ने भी वैसा ही किया। इस तरह नीचे ही नीचे बहुत दूर तक चले जाने पर उनको एक नई सृष्टि दिखलाई दी। उसे देखते ही हमारे आजम को बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि देखने में इस सृष्टि की रचना ठीक उसी के समान थी जिसे कि वह ऊपर छोड़ आया था।

आजम का चित्त अचम्भे में डूबा देख उस देवदूत ने कहा––"ऐ मित्र! किसी समय एक भक्त को तेरे ही समान मनुष्य के स्वभाव के विषय में शंका हुई थी। उसका निवारण करने के लिये जगदीश्वर ने यह नई सृष्टि निर्माण की है। यहाँ जैसे तू चाहता है, वैसे ही दुर्गुण-रहित मनुष्य रहते हैं। यह जगत तेरे ही जगत के समान है। भेद इतना ही है कि ये लोग अनीति अथवा पापाचरण कभी नहीं करते।