पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१०७

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मानसरावर तुम्हें एक और मौका दिया। मैंने नींद का बहाना किया। क्या यह मुमकिन न था कि तुममें से कोई खुदा को बन्दी इस कार को उठाकर मेरे जिगर में चुभा देतो। मैं कलामे-पाक की कसम खाकर कहता हूँ कि तुममें से किसी को कटार पर हाथ रखते देखकर मुझे बेहद खुशी होती, मैं उन नाजुक हार्थों के सामने गरदन लुका देता ! पर अफ़सोस है कि आज तैमूनी खानदान की एक नेटो भो यहाँ ऐसी न निकली जो अपनी हुरमत बिगाड़नेवाले पर हाथ उठाती ! अब यह सल्तनत जिन्दा नहीं रह सकती। इसको हस्ती के दिन गिने हुए हैं। इसका निशान बहुत जल्द दुनिया से मिट जायगा। तुम लोग जाओ और हो सके तो अब भी सल्तनत को बचाओ, वरना इसी तरह इक्स को गुलामी करते हुए दुनिया से रुखसत हो जाभोगी ! ACIDO - r