जमण्डीलाल म नित्य सोते समय उसे महाभारत की वीर कथाएँ पढ़कर सुनाते, गुरु गोविन्दसिंह को कीर्ति का वर्णन करते। अभिमन्यु की कथा से निरूपमा को पता प्रेम था। पिता अपने आनेवाले पुत्र को वीर-संस्कारों से परिपूरित कर देना वाहता था। एक दिन निरुपमा ने पति से कहा-नाम क्या रखोगे ? घमण्डोलाल-यह लो तुमने खब सो वा । मुझे तो इसका ध्यान हो न रहा था। ऐसा नाम होना चाहिए जिससे शौर्य और तेज टपके । सोचो कोई नाम । दोनों प्राणी नामों को व्याख्या करने लगे। जोरावरलाल से लेकर हरिश्चन्द्र तक सभी नाम गिनाये गये, पर 'उस असामान्य बालक के लिए कोई नाम न मिला । अन्त में पति ने कहा-तेराबहादुर कैसा नाम है ? निरुपमा-बम-बस, यहो नाम मुझे पसन्द है। पमण्डीलाल-नाम तो बढ़िया है । गुरु तेग्रयहादुर की कीति सुन हो चुकी हो । नाम का आदमी पर बड़ा असर होता है। निरुपमा नाम ही तो सब कुछ है । दरड़ी, छोड़ो, घुरह, कतवारू जिएके -नाम देखे उसे भी 'यथा नाम तथा गुण.' हो पाया। हमारे बच्चे का नाम होगा तेरबहादुर। प्रसव-झल मा पहुँचा । निरुपमा को मालूम था, क्या होनेवाला है। लेकिन बाहर मंगलाचरण का पूरा सामान था । अपकी किसी को लेशमात्र भो सन्देह न था। नाच- गाने का प्रसन्न भी किया गया था। एक शामियाना खड़ा कियागया था और मित्रगण उसमें बैठे खुश-गप्पियाँ कर रहे थे । हलबाई कडाह से पूरियां और मिठाइयां निकाल रहा था । कई बोरे अनाज के रखे हुए थे कि शुभ-समाचार पाते ही भिक्षुकों को बांटे जायें । एक क्षण का भी विलम्ब न हो, इसलिए वोरों के मुंह खो दिये थे। लेकिन निरुपमा का दिल प्रतिक्षण बैठा माता था। अब क्या होगा ? तीन साल किसी तरह कोशल से कट गये और मजे में कट गये, लेकिन अम विपत्ति सिर पर मंडरा रही है। हाय । कितनी परवशता है। निरपराध होने पर भी यह दल 1 अगर अगवान् की यही इच्छा है कि मेरे गर्भ से कोई पुत्र न जन्म ले तो मेरा क्या दोष ! लेकिन कौन सुनता है। मैं ही अभागिनी हूँ, में हो त्याज्य हूँ, मैं हो कलम हो
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