पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१८८

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दोक्षा १८. 1 . क्या जानता था कि विधना मेरे लिए कोई दूसरा हो षड्यन्त्र रच रहा है, मुझे. विष पिलाने की तैयारियां कर रहा है। ( ४ ) नशे की नोंद का पूछना ही क्या। उस पर ह्विस्को की आधी पोतल चढ़ा गया था। दिन चढे तक सोता रहा। कोई आठ बजे झाडू लगानेवाले मेहतर ने जगाया, तो नींद खुली। शराब की बोतल और गिलास सिरहाने रखकर छती से छिपा दिया था। ऊपर से अपना गाठन डाल दिया था। उठते ही उठते सिरहाने निगाह गई । पोतल और गिलास का पता न । फलेजा धक से हो गया। खानसामा को खोजने लगा कि पूर्वं, उसने तो नहीं उठाकर रख दिया। इस विचार से उठा, और टहलता हुआ डाक बंगले के पिछवाड़े गया, जहाँ नौकरों के लिए अलग उमरे जने हुए थे। पर वहाँ का भयकर दृश्य देखकर आगे कदम बढ़ाने का साहस न हुआ। लाइव खानसामा का कान पकड़े हुए खड़े थे। शराब की बोतलें अलग-अका रखो हुई थीं, साहप एक, दो, तीन करके गिनते थे, और खानसामा से पूठते थे, एक बोतल और कहाँ गया -खानलामा उहता था- हुजूर, खुदा मेरा मुंह काला करे, जो मैंने कुछ भी दगल-फसल को हो। साहब हम क्या झूठ बोलता है ? २९ बोतल नहीं था ? हुजूर, खुदा को कसम, मुझे नहीं माल्म, कितनी बोतलें थी ! इस पर साहब ने खानसामा के कई तमाचे लगाये। फिर कहा- तुम न बतावेगा, तो हम तुमको जान से मार डालेगा। हमारा कुछ नहीं हो सस्ता । हम हादिम है, और हाकिम लोग हमारा दोस्त है। हम तुम अभी-अभी मार डालेगा। नहीं तो पतला दे, एक बोतल कहाँ गया ? मेरे प्राण सूख गये। बहुत दिनों के बाद ईश्वर की याद आई। मन ही मन गोषद्ध नधारी का स्मरण करने लगा। अन्य लाज तुम्हारे हाथ है। भगवन् ! तुम्ह बचाओ, तो नैया बच सकती है, नहीं तो मलदार में डूवी जाती है । अंगरे पा है, न जाने क्या मुसीबत ढा दे। भगवन् ! खानसामा का मुंह बन्द कर दो, उसको वाणी हर लो, तुमने पड़े बड़े द्रोहियों और दुष्टों की रक्षा की है। अजामिल को तुम्ही ने तारा था। मैं भी द्रोही हूँ, द्रोहियों का द्रोही हूँ, मेरा संकट हरो। आपको जान पची तो शराब की और आँस न उठ ऊँगा। खान -तुम गिने,