पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२४४

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• डिक्री के रुपये २४ तुमसे तो कोई परदा नहीं है, पूरे बस हजार की थैली है। बस मुझे अपनी रिपोर्ट में यह लिख देना होगा कि व्यक्तिगत वैमनस्य के कारण यह दुर्घटना हुई है, राजा साहब का इससे कोई सम्पर्क नहीं। जो शहादतें मिल सकी, उन्हें मैंने पायम कर दिया । मुझे इस कार्य के लिए नियुक्त करने में अधिकारियों की एक मसलहत थी। हुँअर साहव हिन्द हैं, इसलिए किसो हिन्दू कर्मचारो को नियुक्त न करके जिलाधीश ने यह भार मेरे सिर रखा। यह सांप्रदायिक विरोध मुहे निस्पृह सिद्ध करने के लिए छानो है। मैंने दो-चार अवसरों पर कुछ तो हुकाम की प्रेरणा से और कुछ स्वेच्छा से मुसलमानों के साप पक्षगत किया, जिससे यह मशहूर हो गया है कि मैं हिन्दुओं का एट्टर दुश्मन हूँ। हिन्दू लोग तो मुझे पक्षपात का पुतला समझते हैं। यह भ्रम सुन्ने भाक्षेपों से बचाने के लिए काफी है । बताओ, हूँ तकदीरदर कि नहा ? 'कैलास-अगर कहीं पात खुल गई तो? नईम--तो यह मेरी समझ का फेर, मेरे अनुसन्धान का दोष, मानव प्रकृति के एफ अटल नियम का उज्ज्वल उदाहरण होगा ! मैं कोई सर्वज्ञ तो हूँ नहीं। मेरी नीयत पर आंच न आने पावेगी । मुझ पर रिश्वत लेने का सन्देह न हो सकेगा। आप इसके व्यावहारिक लोण पर न जाइए, केवल इधके नेतिक कोण पर निगाह रखिए । यह कार्य नीति के अनकूल है या नहीं ? आध्यात्मिक सिद्धांतों को म खींच लाइएगा, केवल नीति के बिद्धातों से इसकी विवेचना कीजिए। कैलास-इसका एक अनिवार्य फल यह होगा कि दूसरे रईसों को भी ऐसे दुष्कृत्यों की उत्तेजना मिळेगी। धन ठे बड़े से बड़े पापों पर परदा पड़ सकता है, इस विचार के फैलने का फल कितना भयकर होगा, इसका आप स्वय अनुमान कर सकते हैं। नईम-जो नहीं, मैं यह अनुमान नहीं कर सकता। रिश्वत मन भी ९० तो सदो अभियोगों पर परदा डालती है। फिर भी पाप का भय प्रत्येक हृदय में है दोनों मित्रों में देर तक इस विषय पर तर्क-वितर्क होता रहा, लेकिन कैलास का न्याय विचार नईम के हास्य और व्यग्य से पेश न पा सका। ( ४ ) विष्णुपुर के हत्याकार पर समाचार-पत्रों में भलोचना होने लगी। सभी पत्र एक स्तर से राजा साइर को हो लाहित करते और गवर्नमेंट को राजा साहब से मनु-