मानसरावर + नईम-अवश्य स्वीकार करता हूँ। कैलास- हम दोनों में घनिष्टता थी कि हम आपस में कोई परदा न रखते थे, इसे आप स्वीकार करते हैं। नईम-अवश्य स्वीकार करता हूँ। कैलास-जिन दिनों आप इस मामले की जांच कर रहे थे, मैं आपसे मिलने गया था, इसे भी आप स्वीकार करते हैं? नईम-अवश्य स्वीकार करता हूँ। कैहास-क्या उस समय आपने मुझसे यह नहीं कहा था कि कुंभर साहब को प्रेरणा से यह हत्या हुई है ? नईम-कदापि नहीं। कैलास-आपके से ये शब्द नहीं निकले थे कि बोस हार को थैली है। नईम जरा भी न मिमका, परा भी संकुचित न हुआ। उसकी प्रबान में लेशमात्र भी लुकनत न हुई, वाणी में जरा भी थरथराहट न आई। उसके मुख पर, भशान्ति, अस्थिरता या असमजस का कोई भी चिह्न न दिखाई दिया। वह अविचल खड़ा रहा। कैलाश ने बहुत डरतेडरते यह प्रश्न किया था। उसको भय था कि नईम इसका कुछ जवाब न दे सकेगा। कदाचित् रोने लगेगा। लेकिन नईम ने निश्शक भाव से कहा-सम्भव है, मापने स्वप्न में मुमसे ये बातें सुनी हों। कैलास एक क्षण के लिए दंग हो गया। फिर उसने विस्मय से नईम की भोर नजर डालकर पूछा-क्या आपने यह नहीं फरमाया था कि मैंने दो-चार अवसरों पर मुसलमानों के साथ पक्षपात किया है, और इसीलिए मुझे हिन्दू विरोधी समझकर इस अनुसन्धान का भार सौंपा गया है। नईम जरा भी न मिमका । भविचल, स्थिर और शान्त भाव से बोला- आपकी कल्पना-शक्ति वास्तव में आश्चर्य-जनक है । बरसों तक आपके साथ रहने पर भी मुझे यह विदित न हुआ था कि आपमें घटनाओं का आविष्कार करने की ऐसी चमत्कार पूर्ण शक्ति है। कैलास ने और कोई प्रश्न नहीं किया । उसे अपने पराभव का दुःख न था, दुःस था नईम को आत्मा के पतन का। वह करना भी न कर सकता था कि कोई मनुष्य अपने मुंह से निकली हुई बात को इतनी ढिठाई से भस्वीकार कर सकता है ; भोर
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