मानसरोवर . क्यों न इसे किसी ऐसी जगह रख दें, जहाँ किसो का ख्याल हो न पहुँचे । कोन अनुपान कर सकता है कि मैंने होरे को अपनो सुराही में रखा होगा? अच्छा, हुक्के की फशी में क्यों न डाल दें ? फरिश्तों को भी खबर न होगी। यह निश्चय करके उसने होरे को फशो में डाल दिया। पर तुरन्त हो शका हुई कि ऐसे बहुमूल्य रत्न को इस जगह रखना उचित नहीं। कौन आने, जालिम को मेरी यह गुल्गुदी ही पसन्द आ जाय। उसने तुरन्त गुड़गुड़ी का पानी तश्तरो में उड़ेल दिया, और होरे को निकाल लिया। पानी की दुर्गन्ध उड़ी ; पर इतनो हिम्मत न पड़ती थी कि खिदमतगार को बुलाकर पानी किवा दे। भय होता था, कहीं वह ताड़ न जाय । वह इसी दुश्धा में पड़ा हुआ था कि मन्त्रो ने आकर बन्दगी को। बादशाह को उस पर पूरा विश्वास था , किन्तु उसे अपनो क्षुद्रता पर इतनी लज्जा आई कि वह इस रहस्य को उस पर भी न प्रकट कर सका। गुमशुम होकर उसको ओर ताकने लगा। मन्त्रो ने बात छेदी-आज खजाने में होरा न मिला, तो नादिर बहुत मलाया। कहने लगा-तुमने मेरे साथ दया की है ; मैं शहर लुटवा लूंगा, करक आम कर -दंगा, सारे शहर को खाक सियाह कर डालूंगा। मैंने कहा -जनाबेअलो को अख्तियार है, जो चाहें करें । पर हमने खजाने की सब कुड़ियां आपके सिरहसालार वह कुछ साम-साफ तो कहता न था, बस, कनाया में बातें कर रहा था, और भूखे गोद को तरह इधर-उधर बौखलाया फिरता था कि किसे पावे, और नोच खाय। मुहम्मदशाह-~-मुझे तो उसके सामने बैठते हुए ऐसा खौफ मालूम होता है, गोया किसी शेर का सामना हो । जालिम की आंखें कितनी कुन्द और राजमनाक हैं। आदमी क्या है, शैतान है। खैर मैं भी उसी उधेड़ बुन में पड़ा हुआ हूँ कि इसे क्योंकर छिपाऊँ । सल्तनत बाय गम नहीं । पर इस होरे को में उस वक'तकन दंगा, जब तक कोई मेरी गरदन पर सवार होकर इसे छोन न ले। वजीर-खुदा न करे कि हुजूर के दुश्मनों को यह जिल्लत उठानी पड़े। में “एक तरकोष बतलाऊँ । हुजून इठे अपने अमामे (पगढ़ो) में रख दें। वहाँ तक उसके फरिश्तों का भी ख्याल न पहुंचेगा। . .
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२७१
दिखावट