सत्याग्रह . राजा-बस, बस। आपने . सोचा। बेशक वह है इस ढग का। उसो को पुलाना चाहिए। विद्वान् है, धर्म कर्म से रहता है। चतुर भी है ! वह अगर हाथ मैंमा जाय तो फिर पाजो हमारो है। राय साहब ने तुरन्त पण्डित मोटेराम के घर सन्देशा मेजा। उस समय शास्त्रीजी पूजा पर थे। यह पैग्राम सुनते हो बल्दो से पूजा समाप्त को, और चले। राजा साहा ने बुलाया है, धन्य भाग ! धर्मपन्नो से बोले-आम चन्द्रमा कुछ बलो मालूम होते हैं । कपड़े लामा, दे, क्यों बुलाया है ? स्त्री ने कहा-भोजन तैयार है, करते जाओ, न जाने कब लौटने का अव- सर मिले। हिन्तु शास्त्रीजी ने भादमो को इतनो देर खड़ा रखना उचित न समझा। आड़े के दिन थे। हरो बनात के अचकन पहनो, जिस पर लाल शंशाफ़ लगी हुई थी। गले में एक परी का दुपट्टा डाला। फिर सिर पर बनारसो साफा बाधा। लाल चौड़े किनारे को रेशमी धोती पहनो, ओर खड़ाऊँ पर चले। उनके मुख से ब्रह्मवेज टप- कता था। दूर हो से मालूम होता था कि कोई महात्मा भा रहे हैं। रास्ते में जो मिलता, सिर झुकाता । कितने हा दुशानदारों ने खड़े होकर पेली को। आज काशी का नाम इन्हीं को बदोलत चल रहा है, नहीं तो और कौन रह गया है। कितना नम्न स्वभाष है। बालों से हंसकर बातें करते हैं। इस ठाट से पण्डितजी राजा साहब महान पर पहुंचे। तीनों मित्रों ने खड़े होकर उनका सम्मान किया। खाँ बहादुर बोले -कहिर पण्डितजो, मिजाज तो अच्छे हैं ? वालाह, आप नुमाइश में रखने के काबिल आदमी हैं। सापका वजन तो दस मन से कम न होगा ! राय साहब-एक मन इल्म के लिए दस मन अक्ल चाहिए। उसो कायदे से एक मन अक्क के लिए दस मन का जिस्म जरूरी है, नहीं तो उसका बोम्सा कौन उठावे ? राजा साहम-आप लोग इसका मतलप नहीं समझ सकते। बुद्धि एक प्रकार का नजला है, जब दिमाग में नहीं समाती, तो जिस्म में मा माती है। खां साहब-मैंने तो पुजुर्गों को स्वानो सुना है कि मोटे भादमो अश्ल 'दुश्मन होते हैं। राय साहब-आपका हिसाब कमोर था, वरना आपको समझ में इतनी बात
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