सत्याग्रह २८५ , जाना अनिवार्य था। एक साथ दो चीजें मुंह में रखो। अभी चुबला हो रहे थे कि वह निशाचर दस कदम और आगे बढ़ आया। एक साथ चार चीजे मुंह में डाली और अधकुचली ही निगल गये । अभी ६ अदद और थीं, और खोंचेवाला फाटक तक आ चुका था। सारी की सारी मिठाई मुँह में डाल लो। अब न चबाते बनता है, न उगलते । वह शैतान मोटरकार की तरह कुप्पो चमकाता हुआ चला ही आता था। जब वह बिलकुल सामने भा गया, यो पण्डितजो ने बल्दो से सारो मिठाई निगल लो। मगर आखिर आदमो ही तो थे, कोई मगर तो थे नहीं । आँखों में पानी भर भाया, गला फैस. गया, शरीर में रोमांच हो आया, जोर से खांसने लगे। खोंचेवाले ने तेल की कुप्पो बढ़ाते हुए कहा- यह लीजिए, देख लीजिए, चले तो हैं आप उपवास करने, पर प्राणे. का इतना र है। आपको क्या चिताप्राण भी निकल जायँगे, तो सरकार बाल बच्चों को परवस्ती करेगी। पण्डितजी को क्रोध तो ऐसा आया कि इस पाजो को खोटी-खरी सुनाऊँ , लेकिन । गले से आवाज़ न निकलो । कुप्पी चुपके से ले ली, और झूठ मूठ इधर-उधर देखकर लौटा दी। बाँचेवाला-आपको क्या पड़ी थी, जो चले सरकार का पच्छ करने । कहीं कल दिन भर पचायत होगी, तो रात तक कुछ तय होगा । तब तक तो आपकी आँखों में तितलियाँ उरने लगेंगी। यह कहकर वह चला गया, और पण्डितत्रो भो थोड़ी देर तक खाँसने के बाद सो रहे। ( ५ ) दूसरे दिन सबेरे ही से व्यापारियों ने मिसकोट करनी शुरू की। उधर कांग्रेस- वालो में भी हलचल मचो । अमन-सभा के अधिकारियों ने भी कान खड़े किये । यह तो इन भोले-भाले बनियो को धमकाने की अच्छी तरकीब हाथ आई। पण्डित समाज ने अलग एक सभा को, और उसमें यह निश्चय किया कि पण्डित मोटेराम को राजनीतिक . मामलो में पड़ने का कोई अधिकार नहीं । हमारा राजनीति से क्या सम्बध ? गरज सारा दिन इसी वाद-विवाद में कट गया, और किसी ने पण्डितजी की खबर न ली। लोग खुल्लमखुल्या कहते थे कि पण्डितजी ने एक हजार रुपये सरकार से लेकर यह अनुष्ठान किया है। बेचारे पण्डितजो ने रात तो लोट पोटभर काटो, पर,
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