पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२९२

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भा का टट्टू २९१ यशवत-तो मैं कहूंगा कि तुम भाड़े के टट्टू हो। रमेश-और मैं कहूँगा कि तुम काठ के हो। ( २ ) यशवंत और रमेश साथ-साथ स्कूल में दाखिल हुए और साप-हो-साथ उगविर्या लेकर कलेज से निकले । यशवत कुछ मदबुद्धि पर बला का पिहनतो था। जिस काम को हाथ में लेता उससे चिपट जाता, और उसे पूरा करके हो छोड़ता। रमेश तेज था, पर आलसो । घण्टे-भर भी जमकर बैठना उनके लिए मुश्किल था। एम. ए. तक तो वह आगे रहा और यशक्त पोछे, मेहनत बुद्धि-बल से परास्त होतो रहो लेटिन सिविल सर्विस में पासा पलट गया। यशवत सन धधे छोड़कर किनारों पर पिछ पड़ा ; घूपना फिरना, सर-सपाटा, सरकम थिएटर,, यार-दोस्त, सबसे मुंह मोदकर अपने एकांत-कुटीर में जा बैठा। रमेश दोस्तों के साथ गर शर उड़ाता. किर खेलना रहा। कभी-कभी मनोरजन के तौर पर किताबें देख लेता। कहाचित् उसे विश्वास था कि अबकी भो मेरो तेजी बाजी ले जायगी। अक्षर जाकर यशवत को दिन फरता। उसकी किताब पद कर देता ; कहता, क्या प्राण दे रहे हो ? सिविक सर्विस कोई मुक्ति तो नहीं है, जिसके लिए दुनिया से नाता तक किया जाय ! यहाँ तक कि यशवत उसे आते देखता, तो किवाड़े बद कर लेता। आखिर परीक्षा का दिन आ पहुँचा। यशवत ने सब कुछ याद किया था, पर किसी प्रश्न का उत्तर सोचने लगत', ता उसे मालूम होता, मैंने जितना पढ़ा था, सम भूल गया। वह बहुत घमराया हुआ था। रमेश पहले से कुछ सोचने का आदी न था। सोचता, नप परचा सामने आवेगा, उप वक देवा जायगा। वह मात्मविश्वास से फूला-फूला फिरता था। परीक्षा का फल निकला, तो सुस्त कछुभा तेज खागोश छे बाजी मार ले गया था। अब रमेश की जाखें खुली। पर वह हताश न हुमा । योग्य आदमो के लिए यश और धन को कमी नहीं, यह उपका विश्वास था। उज्ने कानून को परीक्षा की तैयारी शुरू की, और यद्यपि उधमें उघने बहुत ज्यादा मिहनत न हो, लेकिन अब्बल दाजे में पाठ हुआ। यशवत ने उसकी बधाई का तार भेजा। वह अब एक जिले का •अफसर हो गया था।