पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/३२४

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विनोद ३२३ नईम-तो पहले मुझे और गिरधर-दोनों को गोली मार दो, फिर जाना । सो-बेहया लोगों पर गोली का असर नहीं होता। उसने मुझे बहुत इन्सल्ट किया है। नईम-लूसी, तुम्हारे कुसूरवार हमी दोनों हैं। वह बेचारा पण्डित तो हमारे हाम का खिलौना था। सारी शरारत हम लोगों को थी। कसम तुम्हारे सिर को । e-You naughty boy. नईम-हम दोनों उसे दिल-बहलाव का एक स्वाग बनाये हुए थे। इसको हमें प्ररा भी खबर न थी वह तुम्हें छेड़ने लगेगा। हम तो समझते थे कि उसमें इतनो हिम्मत ही नहीं है । खुदा के लिए मुभा करो, वरना हम तीनों का खून तुम्हारो गरदन पर होगा। लूसो-खैर, तुम कहते हो तो प्रिंसिपल से न कहूँगो, लेकिन शर्त यह है कि पण्डित मेरे सामने बोस मरतमा कान पकड़कर उठे-बैठे, और मुझे कम-से-कम २०.) तावान दे। नईम-लूसी, इतनी बेरहमी न करो। यह समझो, उस परीब के दिल पर क्या गुजर रही होगी। काश, तुम इतनी हसीन न होतो। लूसो मुस्किराकर बोलो-खुशामद करना कोई तुमसे सोख ले । नईम-तो अब वापस चलो। लूसो- मेरी दोनों शर्ते मजूर करते हो न ? नईम-तुम्हारी दुसरी शर्त तो हम सब मिलकर पूरो कर देंगे, लेकिन पहलो धात सख्त है। बेचारा जहर खाकर मर जायगा। हाँ, उसके एवज में पचास फ्रा कानपकड़कर उठ बैठ सकता हूं। -तुम छटे हुए शोहदे हो । तुम्हें शर्म कहीं। मैं उसो को सजा देना चाहती हूँ। बदमाश, मेरा हाथ पकड़ना चाहता था। नईम-जरा भो रहम न करोगी। लूपी -नहीं, सौ बार नहीं। नईम लूसी को साथ लाये । पण्डित के सामने दोनों शर्त रखो गई, तो बेचारा मिलबिला उठा । लूसी के पैरों पर गिर पड़ा, और सिसक-सिसककर रोने लगा। नईम और गिरिधर भी अपने कुकृत्य पर लज्जित हुए । अन्त में लूसी को दया माई । लूघो-