पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/५१

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yo मानसरोवर परशुराम-चको मत ! वह दलाल तुम्हें कहां ले गया ? मर्यादा-स्वामी, यह न पूछिए, मुझे कहते लज्जा आती है। परशुराम-यहां आते तो और भी लज्जा आनी चाहिए.थी! मर्यादा-मैं परमात्मा को साक्षी देती हूँ कि मैंने उसे अपना भंग भी स्पर्श नहीं करने दिया। परशुराम-उसको हुलिया बयान कर सकती हो ? मर्यादा-सावला-सा छोटे गेल का भादमी था। नीचा कुरता पहने हुए था। परशुराम-गले में ताबीज़ भी थी ? मर्यादा-हो, थीं तो। परशुराम-वह धर्मशाले का मेहतर था। मैंने उससे तुम्हारे गुम हो जाने की चर्चा की थी। उस दुष्ट ने उसका यह स्वांग रचा। मर्यादा-मुझे तो वह कोई ब्राह्मण मालूम होता था। परशुराम-नहीं मेहतर था । वह तुम्हें अपने घर ले गया? मर्यादा- हाँ, उसने मुझे तांगे पर बैठाया और एक तग गली में, एक छोटे-से मकान के अन्दर ले जाकर बोला-तुम यहीं पेठो, तुम्हारे बाबूजी यहाँ आयेंगे । अब मुझे विदित हुआ कि मुझे धोखा दिया गया । रोने लगो। वह आदमी थोड़ी देर के बाद चला गया और एक बुढ़िया भाकर मुझे भांति-भांति के प्रलोभन देने लगी। सारी रात रोकर काटौ । दूसरे दिन दोनों फिर मुझे समझाने लगे कि रो-रोकर बान दे दोगी, मगर यहां कोई तुम्हारी मदद को न आयेगा । तुम्हारा एक घर छूट गया। हम तुम्हें उससे कहीं अच्छा घर देंगे जहाँ तुम सोने के कौर खाभोगी और सोने से सद जाओगी । बस मैंने देखा कि यहां से किसी तरह नहीं निकल सकती तो मैंने कौशल करने का निश्चय ख्यिा। परशुराम -खैर, सुन चुका । मैं तुम्हारा ही कहना माने लेता हूँ कि तुमने अपने सतीत्व की रक्षा की, पर मेरा हृदय तुमसे घृणा करता है। तुम मेरे लिए फिर वह नहीं हो सकती को पहले थी । इस घर में तुम्हारे लिए स्थान नहीं है। मर्यादा-स्वामीजी, यह अन्याय न कोजिए। मैं आपको वही स्त्री हूँ जो पहले थी। सोचिए, मेरी.क्या दशा होगी? परशुराम-मैं यह सब सोच चुका और निश्चय कर चुका । आज : दिन से