मानसरोवर कैलासकुमारो कभी भूलकर भी इन जलूमों को न देखती। कोई मरात या विवाह को बात चलाता तो वह मुंह फेर लेती। उसकी दृष्टि में वह विवाह नहीं, भोली-भालो कन्याओं का शिकार था। रातों को यह शिकारियों के कुत्ते समतो थो। यह विवाह नहीं है, स्त्री का बलिदान है। 1 - तीज का व्रत आया। घरों में सफाई होने लगी। रमणिया इस व्रत को रखने की तैयारियां करने लगीं। जागेश्वरी ने भी व्रत का सामान किया। नई-नई साड़ियां मंगवाई। कैलासकुमारो के ससुराल से इस अवसर पर कपड़े, मिठाइयां और खिलौने भाया करते थे। अवको भी आये । यह विवाहिता स्त्रियों का व्रत है। इसका फल है पति का कल्याण । विधवाएँ भी इस व्रत का यथोचित रोति से पालन करती हैं। पति से उनका सम्बन्ध शारीरिक नहीं, वरन् आध्यात्मिक होता है। उसका इस जीवन के साथ अन्त नहीं होता, अनन्त काल तक जीवित रहता है। केलासकुमारी अब तक यह व्रत रखती आई यो । अबको उसने निश्चय किया, मैं यह व्रत न रागो । माँ ने मुना तो माथा ठोंक लिया। बोली-बेटी, यह व्रत रखना तुम्हारा धर्म है । कैलासकुमारी-पुरुष भी स्त्रियों के लिए कोई व्रत रखते हैं ! जागेश्वरी-मदी में इसकी प्रथा नहीं है। कैलासकुमारी-इसो लिए न कि पुरुषों को स्त्रियों की जान उतनी प्यारी नहीं होतो जितनी स्त्रियों को पुरुषों की जान ? जागेश्वरी-स्त्रियां पुरुषों की बराबरी कैसे कर सकती हैं ? उनका वो धर्म है अपने पुरुष को सेवा करना। कैलासकुमारी-मैं इसे अपना धर्म नहीं समझती। मेरे लिए अपनी मात्मा की रक्षा के सिवा और कोई धर्म नहीं है। भागेश्वरी-बेटी, गजब हो जायगा, दुनिया क्या कहेगी। कैलासकमारो-फिर वही दुनिया। अपनी आत्मा के सिवा मुझे किसी का मय नहीं। हृदयनाथ ने बागेश्वरी से यह बातें सुनी तो चिन्ता-सागर में इब गये। इन बातों का क्या आशय ? क्या आरम-सम्मान का भाव जागृत हुआ है या नैराश्य की भर-क्रीका है ! धनहीन प्राणी को जब कष्ट निवारण का कोई उपाय नहीं रह जाता तो .
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