एक आंच की कसर ९१ यशोदानन्द -अगर ऐसा होता तो क्या पूछना था, लोगों को दण्ड मिल जाता और वास्तव में ऐसा हो होना चाहिए। यह ईश्वर का अत्याचार है कि ऐसे लोभी, धन पर गिरनेवाले, बरदा फरोश, अपनी सन्तान का विक्रय करनेवाले नराधम जीवित है और सुखी हैं। समाज उनका तिरस्कार नहीं करता। मगर वह सब परदा-फरोश हैं • इत्यादि। व्याख्यान बहुत लम्बा और हास्य से भरा हुआ ण । लोगों ने खूब वाह-वाह की। अपना वक्तव्य समाप्त करने के बाद उन्होंने अपने छोटे लड़के परमानन्द को जिसकी अवस्था कोई ७ वर्ष की थी, मच पर खड़ा किया। उसे उन्होंने एक छोटा- सा व्याख्यान लिखकर दे रखा था। दिखाना चाहते थे कि इस कुल के छोटे बालक भी कितने कुशाप्र-बुद्धि हैं। सभा-समाजों में बालकों से व्याख्यान दिलाने की प्रथा है हो, किसी को कुतूहल न हुआ। बालक बड़ा सुन्दर, होनहार, हँसमुख था। मुस- किराता हुआ मच पर आया और जेब में से एक काग्रज निकालकर बड़े गर्व के साथ उच्च स्वर से पढ़ने लगा- 9 प्रिय बन्धुवर नमस्कार ! आपके पत्र से विदित होता है कि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है। मैं ईश्वर को साक्षी करके निवेदन करता हूँ कि निर्दिष्ट धन आपकी सेवा में इतनी गुप्त रीति से पहुंचेगा कि किसी को लेश-मात्र भी सदेह न होगा। हाँ, केवल एक जिज्ञासा करने को धृष्टता करता हूँ। इस व्यापार को गुप्त रखने से आपको जो सम्मान और प्रतिष्ठा- लाभ होगा, और मेरे निकटवर्ती बन्धुजनों में मेरी जो निन्दा की जायगी उसके उप- लक्ष्य में मेरे साथ क्या रियायत होगी ? मेरा विनीत अनुरोध है कि २५ में से ५ निकालकर मेरे साथ न्याय किया जाय महाशय यशोदानन्द घर में मेहमानों के लिए भोजन परसने का आदेश करने गये थे। निकले तो यह वाक्य उनके कान में पड़ा-२५ में से ५निकालकर मेरे साथ न्याय कीजिए। चेहरा फ्रक हो गया, झपटकर लड़के के पास गये, कागज़ उसके हाथ से छीन लिया और बोले-नालायक, यह क्या पढ़ रहा है, यह तो किसी मुवकिल का खत है जो उसने अपने मुकदमे के बारे में लिखा था। यह तू कहाँ से रठा साया, शैतान, जा वह कागज ला, जो तुझे लिखकर दिया गया था।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/९२
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