पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०२
मानसरोवर


रोते हुए उनकी छाती पर सिर रख दिया और उस परम सुख का अनुभव किया, जिसके लिए कितने दिनो से मेरा हृदय तड़प रहा था। आज फिर मुझे पतिदेव का हृदय धड़कता हुआ सुनाई दिया, आज उनके स्पर्श में फिर स्फूर्ति का ज्ञान हुआ।

अभी तक उस पद के शब्द मेरे हृदय में गूॅज रहे थे --

कहाँ होते हो अन्तर्धान
लुटा करके सोने-सा प्यार!*


--------