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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१२३

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१२४ मानसरोवर कोकिला ने श्रद्धा से कुछ भी न कहा : लेकिन दूसरे दिन भगतराम से बोली--अब किस सोच-विचार मे हो बेटा ! भगतराम ने सिर खुजलाते हुए कहा-अम्माजी, मैं तो हाजिर हूँ; लेकिन घरवाले किसी तरह राजी नहीं होते । जरा फुरसत मिले, तो घर जाकर उन्हे राजी कर लूँ । मा-बाप को नाराज़ करना भी तो अच्छा नहीं ! कोकिला कुछ जवाब न दे सकी। ( ६ ) भगतराम के मा-बाप शहर से दूर रहते थे। यही एक उनका लडका था। उनकी सारी उमगे उसी के विवाह पर अवलबित थीं। उन्होंने कई बार उसकी शादी तय की। पर भगतराम बार-बार यहीं कहकर निकल जाता कि जब तक नौकर न हो जाऊँगा, विवाह न करूँगा । अब वह नौकर हो गया था ; इसलिए दोनो माघ के एक ठडे प्रातःकाल में लदे-फॅदे भगतराम के मकान पर आ पहुँचे । भगतराम ने दौड़कर उनकी पद-धुलि ली और कुशल आदि पूछने के बाद कहा--आप लोगों ने इस जाड़े-पाले मे क्यों तकलीफ़ की। मुझे बुला लिया होता। चौधरी ने अपनी पत्नी की ओर देखकर कहा--सुनती हो बच्चा की अम्मा ! जब बुलाते हैं, तो कहते हैं कि इम्तिहान है, यह है, वह है । जब श्रा गये, तो कहता है बुलाया क्यों नहीं । तुम्हारा विवाह ठीक हो गया है । अब एक महीने की छुट्टी लेकर हमारे साथ चलना होगा। इसी लिए हम दोनों आये हैं। चौधराइन--हमने कहा कि बिना गये काम नहीं चलेगा। तो आज ही दरख़ास दे दो । लड़की बड़ी सुदर ; पढ़ी-लिखी, अच्छे कुल की है । भगतराम ने लजाते हुए कहा-मेरा विवाह तो यहीं एक जगह लगा हुआ है, अगर आप लोग राज़ी हों, तो कर लूं। चौधरी-इस शहर में हमारी बिरादरी का कौन है, काहे बच्चा की अम्मा? चौधराइन-यहाँ हमारी बिरादरी का तो कोई नहीं है । भगतराम-मा-बेटी हैं। घर में रुपया भी है। लड़की ऐसी है कि तुम लोग देखकर खुश हो जानोगे । मुफ्त में शादी हो जायगी। 1 ।