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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१२५

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१२६ मानसरोवर चौधरी-हम तो गँवार आदमी हैं ; पर नहीं समझ में आता तुम्हारी यह नियत कैसे हुई ? रंडी की वेटी चाहे इन्नर की परी हो, तो भी रंडी की बेटी है। हम तुम्हारा विवाह वहाँ न होने देगे। अगर तुमने विवाह किया, तो हम दोनों तुम्हारे ऊपर जान दे देगे । इतना अच्छी तरह से समझ लेना- क्यों बच्चा की अम्मा! चौधराइन- ब्याह कर लेगे, जैसे हॅसी-ठट्ठा है ! झाडू मार के भगा दूंगी रोड़ को ! अपनी वेटी अपने घर मे रखे। भगतराम -अगर आप लोगो की आज्ञा नहीं है, तो मैं विवाह नहीं करूँगा ; मगर मैं किसी दूसरी औरत से भी विवाह न करूँगा। चौधराइन-हाँ, तुम कुवारे रहो, यह हमें मजूर है । पतुरिया के घर मे ब्याह न करेगे। भगतराम ने अबकी झंझलाकर कहा-आप उसे बार-बार पतुरिया क्यों कहती हैं। किसी जमाने मे यह उसका पेशा रहा होगा। आज दिन वह जितने आचार-विचार से रहती शायद ही कोई और रहती हो। ऐसा पवित्र आचरण तो मैंने आज तक देखा ही नहीं। भगतराम का सारा यत्न विफल हो गया। चौधराइन ने ऐसी ज़िद पकड़ी के जौ भर भी अपनी जगह से न टली। रात को जब भगतराम अपने प्रेम-मदिर मे पहुँचा, तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। एक-एक अग से निराशा टपक रही थी। श्रद्धा रास्ता देखती हुई घबरा रही थी कि श्रान इतनी रात तक आये क्यो नहीं। उन्हें क्या मालूम कि मेरे दिल की क्या हालत हो रही है। यार दोस्तों से छुट्टी मिलेगी, तो भूलकर इधर भी आ जायेंगे। कोकिला ने कहा--मै तो तुझसे कह चुकी कि उनका अब वह मिजाज नही रहा। फिर भी तो तू नही मानती। आखिर इस टालमटोल की कोई हद भी है। श्रद्धा ने दुखित होकर कहा-अम्माजी, मै आपसे हज़ार बार विनय कर चुकी हूँ कि चाहे लौकिक रूप मे कुमारी ही क्यो न रहूँ; लेकिन हृदय से उनकी ब्याहिता हो चुकी । अगर ऐसा श्रादमी विश्वास करने के काबिल नहीं है; तो फिर नहीं जानती कि किस पर विश्वास किया जा सकता है