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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१५१

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१५२ मानसरोवर मुलिया का मन बार बार करता था कि चुंदरी कल्लू को दिखा दे ; पर नतीजा सोचकर रह जाती थी। उसने चुंदरी रख क्यो ली ! उसे अपने ऊपर क्रोध आ रहा था ; लेकिन राजा को कितना दुःख होता। क्या हुआ उसकी चुदरी छन भर पहन लेने से, उसका मन तो रह गया । लेकिन उसके प्रशात मानसा-सागर में यह एक कीट पाकर उसे मथ रहा था। उसने चुंदरी रख ली ? क्या यह कल्लू के साथ विश्वासघात नहीं है ! उसका चित्त इस विचार से विकल हो गया। उसने मन को समझाया, विश्वासघात क्यों हुआ ? इसमे विश्वासघात की क्या बात है। कौन वह राजा से कुछ बोली ? जरा-या हॅस देने से अगर किसी का दिल खुश हो जाता है, तो इसमें क्या बुराई है। कल्लू ने पूछा-आज रज्जू क्या करने आया था ? मुलिया की देह थर-थर कांपने लगी। बहाना कर गई-तमाखू मांगने आये थे। कल्लू ने भवे सिकोड़कर कहा-उसे अदर मत श्राने दिया करो। अच्छा आदमी नहीं है। मुलिया-मैंने कह दिया तमाखू नहीं है, तो चले गये। कल्लू ने अबकी तेजस्विता के साथ कहा-बों झूठ बोलती है तनाखू मायने नहीं आया था। मुलिया-तो और यहाँ क्या करने आते ? राजा-चाहे जिस काम से पाया हो, तमाखू मांगने नहीं आया। वह जानता था, मेरे घर मे तमाखू नहीं है। मैं तमाखू के लिए उसके घर ? वह गया था। 1 मुलिया की देह मे काटो तो लहू नहीं । चेहरे का रंग उड़ गया। सिर झुकाकर बोली-मैं किसी के मन का हाल क्या जानू आज तीजे का रतजगा था । मुलिया पूजा का सामान कर रही थी; पर इस तरह जैसे मन में जरा भी उत्साह, जरा भी श्रद्धा नहीं है उसे ऐसा मालूम हो रहा है, उसके मुख में कालिमा पुत गई है और