पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१६

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प्रेरणा मेरे साथ खाता, मेरे साथ सोता। मैं ही उसका सब कुछ था आहे ! वह संसार में नहीं है । मगर मेरे लिए वह अब भी उसी तरह जीता-जागता है। मै जो कुछ हूँ, उसी का बनाया हुआ हूँ। अगर वह दैवी विधान की, भांति मेस पथ-प्रदर्शक न बन जाता, तो शायद आज मैं किसी जेल में पड़ा होता। एक दिन मैंने कह दिया था अगर तुम रोज नहा न लिया करोगे तो मैं तुमसे न बोलूंगा। नहाने से वह न जाने क्यों जी चुराता था। मेरी इस धमकी का फल यह हुआ कि वह नित्य प्रातःकाल नहाने लगा। कितनी ही क्यों न हो, कितनी ही ठडी हवा चले, लेकिन वह स्नान अवश्य करता था । देखता रहता था, मैं किस बात से खुश होता हूँ । एक दिन मैं कई मित्रों के साथ थियेटर देखने चला गया, ताकीद कर गया था कि तुम खाना खाकर सो रहना । तीन बजे रात को लौटा, तो देखा कि वह बैठा हुआ है। मैंने पूछा-तुम सोये नहीं ? बोला--नींद नहीं आई। उस दिन से मैंने थियेटर जाने का नाम न लिया। बच्चो मे प्यार की जो एक भूख होती है-दूध, मिठाई और खिलौनो से भी ज्यादा मादक-जो मा की गोद के सामने ससार की निधि की भी परवाह नहीं करते, मोहन की वह भूख कभी सतुष्ट न होती थी। पहाड़ो से टकरानेवाली सारस की आवाज़ की तरह वह सदैव उसके नसों मे गूंजा करती थी। जैसे, भूमि पर फैली हुई लता कोई सहारा पाते ही उससे चिपट जाती है, वही हाल मोहन का था । वह मुझसे ऐसा चिपट गया था कि पृथक् किया जाता, तो उसकी कोमल वेलि के टुकड़े-टुकडे हो जाते । वह मेरे साथ तीन साल रहा और तब मेरे जीवन में प्रकाश की एक रेखा डालकर अधकार मे विलीन हो गया। उस जीर्ण काया मे कैसे कैसे अरमान भरे हुए थे । कदाचित् ईश्वर ने मेरे जीवन मे एक अवलंब की सृष्टि करने के लिए उसे भेजा था। उदेश्य पूरा हो गया ; तो वह क्यों रहता। ( ४ ) 'गर्मियो की तातील थी। दो तातीलों में मोहन मेरे ही साथ रहा था। मामाजी के श्राग्रह करने पर भी घर न गया। अबकी कालेज के छात्रों ने काश्मीर-यात्रा करने का निश्चय किया और मुझे उसका अध्यक्ष वनाया । काश्मीर यात्रा की अभिलाषा मुझे चिरकाल से थी। इसी अवसर को गनीमता