. मानसरोवर दलाल बुलाया गया । नाटा-सा आदमी था, पोपला मुँह, 'कोई ७. की अवस्था । नाम था चोखेलाल । कुबेर ने कहा-चोखेलालजी से हमारी तीस साल की दोस्ती है। श्रादमी क्या रत्न हैं। भीमचंद-देखो चोखेलाल, हमें यह मकान बेचना है।' इसके लए कोई अच्छा ग्राहक लायो । तुम्हारी दलाली पक्की । कुबेरदास-बाज़ार का हाल अच्छा नहीं हैलेकिन फिर भी हमें यह तो देखना पड़ेगा कि रामनाथ के बाल-बच्चों को टोग न हो । ( चोखेलाल के कान में) तीस से आगे न जाना। भीमचंद-देखिए कुबेरदास, यह अच्छी बात नहीं है । कुबेरदास-तो मैं क्या कर रहा हूँ। मैं तो यही कह रहा था कि अच्छे ल गवाना। चोखेलाल-आप लोगों को मुझसे यह कहने की ज़रूरत नहीं । मैं अपना धर्म समझता हूँ। रामनाथजो मेरे भी मित्र थे । मुझे यह भी मालूम है कि इस मकान के बनवाने में एक लाख से कम एक पाई मो नहीं लगे लेकिन बाज़ार का हाल क्या आप लोगों से छिपा है । इस समय इसके २५ हजार से वेसी नहीं मिल सकते । सुभीते से तो कोई ग्राहक से दस-पांच हज़ार और मिल जायेगे; लेकिन इस समय तो २५ हज़ार भो मुश्किल से मिलेंगे। लो दही और लाव दही की बात है। धनीराम-२५ हज़ार तो बहुत कम है भाई, और न सही ३० हज़ार तो करा दो। चोखेलाल-३० क्या मैं तो ४० करा दू, पर कोई ग्राहक तो मिले । आप लोग कहते हैं तो मैं ३० हजार की बात चीत करूँगा। धनीराम-जब तीस हज़ार में ही देना है तो कुबेरदासजी ही क्यों न ले। इतना सस्ता माल दूसरों को क्यों दिया जाय । कुवेरदास-आप सब लोगों की राय हो, तो ऐसा ही कर लिया जाय । धनीरामजी ने हो, हाँ कहकर हामी भरी। भीमचद मन में ऐठकर रह गये । यह सौदा भी पक्का हो गया। श्राज ही वकील ने बैनामा लिखा ।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१६५
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