पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१६६

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1 मृतक भोज तुरंत रजिस्ट्री भी हो गई। सुशीला के सामने बैनामा लाया गया, तो उसने एक ठडी सांस ली और सजल नेत्रों से उसपर हस्ताक्षर कर दिये। अब उसे उसके सिवा और कहीं शरण नहीं है। वेवफा मित्र की भांति यह घर भी सुख के दिनों में साथ देकर दु:ख के दिनों में उसका साथ छोड़ रहा है । पच लोग सुशीला के आंगन में बैठे बिरादरी के रुक्के लिख रहे हैं और अनाथा विधवा ऊपर झरोखे पर बैठी भाग्य को रो रही है। इधर रुक्का तैयार हुश्रा उधर विधवा की आँखों से आंसू की बू दे निकलकर रुकके पर गिर पड़ी। धनीराम ने ऊपर देखकर कहा-पानी का छींटा कहाँ से आया ? संतलाल-बाई बैठी रो रही है । उसने रुक्के पर अपने रक्त के आँसुओं की मुहर लगा दी है। धनीराम-(ऊँचे स्वर मे ) अरे तो तू रो क्यों रही है बाई ? यह रोने का समय नहीं है, तुझे तो प्रसन्न होना चाहिए कि पच लोग तेरे घर मे अाज यह शुभ-कार्य करने के लिए जमा हैं। जिस पति के साथ तूने इतने दिनों भोग-विलास किया उसी का पीछा सुधारने में तू दुःख मानती है ? बिरादरी में रुका फिरा । इधर तीन-चार दिन पचों ने भोज की तैयारियों में बिताये । घी धनीरामजी की आढ़त से आया । मैदा, चीनी की आढ़त भी उन्हीं की थी। पांचवे दिन प्रातःकाल ब्रह्मभोज हुआ। संध्या समय बिरादरी का ज्योनार । सुशीला के द्वार पर बग्धि यों और मोटरों की कतारें खड़ी थीं। भीतर मेहमानों की पगते थी । आँगन, बैठक, दालान, बरौठा, ऊपर की छत, नीचे ऊपर मेहमानों से भरा हुआ था। लोग भोजन करते थे और पचो को सराहते थे। खर्च तो सभी करते हैं, पर इंतज़ाम का सलीका चाहिए। ऐसे स्वादिष्ट पदार्थ बहुक कम खाने में प्राते हैं । 'सेठ चपाराम के भोज के बाद ऐसा भोज रामनाथजी का ही हुआ है।' 'अमृतियाँ कैसी कुरकुरी हैं । रसगुल्ले मेवों से भरे हैं। 'सारा श्रेय पचों को है। धनीराम ने नम्रता से कहा--आप भाइयों की दया है, जो ऐसा कहते .