पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१७६

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मृतक भोज १७७ . ले कि रानी हो जायगी। लाखों की संपत्ति है, लाखों की । तेरे धन्य भाग कि ऐसा वर मिला । तेरा छोटा भाई है, उसको भी कोई दुकान करा दी जायगी । सेठ-बिरादरी की कितनी बदनामी है । सेठानी-है ही। रेवती ने लजित होकर कहा-मैं क्या जानू , आप मामा से कहें । सेठ (बिगड़कर )-वह कौन होता है | टके पर मुनीमी करता है।' उससे मैं क्या पूछू । मैं बिरादरी का पच हूँ। मुझे अधिकार है, जिस काम से बिरादरी का कल्याण देखू वह करूँ। मैंने और पचों से राय ले ली है। सब मुझसे सहमत हैं। अगर तू यों नहीं मानेगी, तो हम अदालती कार्रवाई करेगे। तुझे खरच-बरच का काम होगा, यह लेती जा। यह कहते हुए उन्होने २०) के नोट रेवती की तरफ फेक दिये । रेतवी ने नोट उठाकर वहीं पुरजे-पुरजे कर डाले और तमतमाये मुख से बोली-बिरादरी ने तब हम लोगों की बात न पूछी, जब हम रोटियो को मुहताज थे। मेरी माता मर गई, कोई झांकने तक न गया । मेरा भाई. बीमार हुआ, किसी ने खबर तक न ली। ऐसी बिरादरी की मुझे परवाह नहीं है। रेवती चली गई, तो झाबरमल कोठरी से निकल आये। चेहर उदास था। सेठानी ने कहा-लड़की बड़ी घमडिन है। आँख का पानी भर गया है। झाबरमल-बीस रुपये खराब हो गये। ऐसा फाड़ा है कि जुड़ भी नहीं सकते। कुबेरदास-तुम घबड़ानो नहीं; मैं इसे अदालत से ठीक करूँगा। जाती कहाँ है। झाबरमल-अब तो आपका ही भरोसा है। बिरादरी के बड़े पच की बात कहीं मिथ्या हो सकती है ? रेतवी नाबा- लिग थी। माता-पिता नहीं थे। ऐसी दशा मे पचों का उसपर पूरा अधिकार था। वह विरादरी के दबाव में नहीं रहना चाहती है, न चाहे । कानून बिरादरी के अधिकार की उपेक्षा नहीं कर सकता।