पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूत मुरादाबाद के पडित सीतानाथ चौबे गत ३० वर्षों से वहाँ के वकीलों के नेता हैं। उनके पिता उन्हें बाल्यावस्था में ही छोड़कर परलोक सिधारे थे। घर मे कोई संपत्ति न थी। माता ने बड़े बडे कष्ट झेलकर उन्हें पाला और पढ़ाया । सबसे पहले वह कचहरी में १५) मासिक पर नौकर हुए । फिर वकालत की परीक्षा दी। पास हो गये । प्रतिभा थी, दो ही चार वर्षों में वकालत चमक उठी। जब माता का स्वर्गवास हुआ, तब पुत्र का शुमार जिले के गण्य मान्य व्यक्तियों में हो गया था। उनकी आमदनी एक हजार रुपये महीने से कम न थी। एक विशाल भवन बनवा लिया था; कुछ जमीदारी ले ली थी, कुछ रुपये बैंक में रख दिये थे, और कुछ लेन-देन में लगा दिये थे । इस समृद्धि पर चार पुत्रों का होना उनके भाग्य को आदश बनाये हुए था। चारों लड़के भिन्न-भिन्न दौं में पढते थे। मगर यह कहना कि यह सारी विभूति चौबेजी के अनवरत परिश्रम का फल थी, उनकी पत्नी मंगला देवी के साथ अन्याय करना है। मगला बड़ी सरल, गृह-कार्य में कुशल और पैसे का काम धेले में चलानेवाली स्त्री थी। जब तक अपना घर न बन गया, उसने ३) महीने से अधिक का मकान किराये पर नहीं लिया और रसोई के लिए मिसराइन तो उसने अब तक न रखी थी। उसे अगर कोई व्यसन था, तो गहनों का ; और चौबेजी को भी अगर कोई व्यसन था, तो स्त्री को गहने पहनाने का। वह सच्चे पत्नी-परायण मनुष्य थे । साधारणत: महफिलों में वेश्याओं से हँसी-मजाक कर लेना उतना बुरा नहीं समझा जाता पर पडितजी अपने जीवन में कभी किसी नाच-गाने की महफिल में गये ही नहीं। पांच बजे तडके से लेकर बारह बजे रात तक उनका व्यसन, मनोरजन, पढ़ना लिखना, अनुशीलन, जो कुछ था कानून था। न उन्हें राजनीति से प्रम था, न जाति-सेवा से । ये सभी काम उन्हें व्यर्थ-से जान पड़ते थे। उनके 3 "