पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१८०

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SA भूत १८ साहब कभी इतने बालवत्सल न थे। अब बाहर से पाते, तो कुछ न कुछ सौगात बिन्नी के वास्ते ज़रूर लाते, और घर में कदम रखते ही पुकारते- बिन्नी बेटी, चलो । बिन्नी दौडती हुई अाकर उनकी गोद में बैठ जाती। मगला एक दिन बिन्नी को लिये बैठी थी। इतने में पडितजी श्रा गये। बिन्नी दौड़कर उनकी गोद में जा बैठी। पडितजी ने पूछा- किसकी बेटी है ? बिन्नी-न बताऊँगी? मगला-कह दे वेटा, जीजी की बेटी हूँ। पडित-त् मेरी बेटी है मिन्नो कि इनकी ! बिन्नो-न बताऊँगी। पडित-अच्छा, हम लोग आँखे बंद किये बैठे हैं , चिन्नी जिसकी के होगी, उसको गोद में बैठ जायगी । बिन्नी उठी और फिर चौवेजी के गोद में बैठ गई। पडित---मेरी बेटी है, मेरी बेटी है , ( स्त्रो से ) अब न कहना कि मेरी बेटी है। मगला-अच्छा, जाओ बिन्नी, अर तुम्हें मिठाडे न दूंगी, गुड़ियाँ भी. न मँगा दूंगी! बिन्नी- -भैयाजी मॅगवा देगे, तुम्हें न दूंगी। वकील साहब ने हंसकर बिन्नी को छाती से लगा लिया, और गोद में लिये हुए बाहर चले गये। वह अपने इष्ट-मित्रों को भी इस बालकोड़ा का रसास्वादन कराना चाहते थे। श्राज से जो कोई बिन्नी से पूछता कि तू किसकी बेटी है, तो विन्नो चट कह देती-भैया की। एक बार बिन्नी का बाप पाकर उसे अपने साथ ले गया। बिन्नो ने रो- रोकर दुनिया सिर पर उठा ली। इधर चौबे जी को भी दिन काटना कठिन हो गया। एक महीना भी न गुज़रने पाया था कि वह फिर ससुराल गरे और बिन्नी को लिवा लाये। विन्नी अपनी माता ओर पिता को भूल गई है १२