पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२१७

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२१४ . मानसरोवर रूपवान युवक मेरे सामने आ जायं, तो मैं उसे आँख उठाकर न देखू गी। विनोद के मन मे मेरे प्रति यह भाव क्यों नहीं है ? चंदा, प्यारी बहन, एक सप्ताह के लिए आ जा। तुझसे मिलने के लिए मन अधीर हो रहा है । मुझे इस समय तेरी सलाह और सहानुभूति की बड़ी ज़रूरत है। यह मेरे जीवन का सबसे नाजुक समय है। इन्हीं दस-पांच दिनों में या तो पारस हो जाऊँगी, या मिही । लो ७ बज गये और अभी बाल तक नहीं बनाये । विनोद के आने का समय है। अब बिदा होती हूँ। कहीं आज फिर अभागिनी कुसुम अपने बरामदे में न आ खड़ी हो। अभी से दिल काप रहा है। कल तो यह सोचकर मन को समझाया था कि यों ही सरल भाव से वह हँसी पड़ी होगी। आज भी अगर वही दृश्य सामने आया, तो उतनी आसानी से मन को न समझा सकूँगी। तुम्हारी पद्मा (२) गोरखपुर ५-७-२५ प्रिय पद्मा, भला एक युग के बाद तुम्हें मेरी सुधि आई। मैंने तो समझा था, शायद तुमने परलोक-यात्रा कर ली। यह उस निष्ठुरता का दड ही है, जो कुसुम तुम्हें दे रही है। १५ एप्रिल को कॉलेज बंद हुआ और एक जुलाई को श्राप ख़त लिखती हैं, पूरे ढाई महीने बाद, वह भी कुसुम की कृपा जिस कुसुम को तुम कोस रही हो, उसे मैं आशीर्वाद दे रही हूँ। वह दारुण दुःख की भाँति तुम्हारे रास्ते में न श्रा खड़ी होती, तो तुम्हें क्यो मेरी याद आती । खैर, विनोद की तुमने जो तसवीर खींची, वह बहुत ही आकर्षक है, और मैं ईश्वर से मना रही हूँ, वह दिन जल्द आये कि मैं उनसे बहनोई के नाते मिल सकूँ। मार देखना, कहीं सिविल मैरेज न कर बैठना । विवाह हिंदू-पद्धति के अनुसार ही हो । हाँ, तुम्हें अख्तियार है, जो सैकड़ो बेहूदा और व्यर्थ के पचड़े हैं, उन्हें निकाल डालो। एक सच्च, विद्वान पंडित को