पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२४१

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२४२ "मानसरोवर • करती हैं और हृदय एक ही गहरी चोट सह सकता है। जिस रमणी ने मेरे प्रेम को तुच्छ समझकर पैरों से कुचल दिया उसको मैं दिखाना चाहता हूँ कि मेरी आँखो में धन कितनी तुच्छ वस्तु है। यही मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। मेरा जीवन उसी दिन सफल होगा जब विमला के घर के सामने मेरा विशाल भवन होगा और उसका पति मुझसे मिलने में अपना सौभाग्य समझेगा। मैंने गंभीरता से कहा-यह तो कोई बहुत ऊँचा उद्देश्य नहीं है । श्राप यह क्यो समझते हैं कि विमलाने केवल धन के लिए आपका परित्याग किया। संभव है, इसके और भी कारण हो । माता-पिता ने उसी पर दबाव डाला हो, या अपने ही में उसे कोई ऐसी त्रुटि दिखाई दी हो जिससे आपका , जीवन दुःखमय हो जाता। आप यह क्यों समझते हैं कि जिस प्रम से वचित होकर आप इतने दुखी हुए, उसी प्रम से वचित होकर वह सुखी हुई होगी। संभव था, कोई धनी स्त्री पाकर आप भी फिसल जाते । भुवन ने जोर देकर कहा-यह असभव है, सर्वथा असभव है। मैं उसके लिए त्रिलोक का राज्य भी त्याग देता। मैंने हँसकर कहा-हाँ, इस वक आप ऐसा कह सकते हैं, मगर ऐसी परीक्षा मे पड़कर आपको क्या दशा होती इसे श्राप निश्चयपूर्वक नहीं बता सकते। सिपाही की बहादुरी का प्रमाण उसकी तलवार है, उसकी ज़बान नहीं । इसे अपना सौभाग्य समझिए कि आपको उस परीक्षा में नहीं पड़ना 'पड़ा। वह प्रेम प्रेम नहीं है जो प्रत्याघात की शरण ले। प्रम का आदि • भी सहृदयता है और अत भी सहृदयता । सभव है, आपको अब भी कोई ऐसी बात मालूम हो जाय जो विमला की तरफ से आपको नर्म कर दे। भुवन गहरे विचार में डूब गये। एक मिनट के बाद उन्होने सिर उठाया और बोले-'मिसेज़ विनोद, आपने आज एक ऐसी बात सुझा दी जो श्राज तक मेरे ध्यान में आई ही न थी। यह भाव कभी मेरे मन मे उदय ही नहीं इतना नुदार क्यों हो गया समझ में नहीं आता। मुझे अाज मालूम हुआ कि प्रेम के ऊँचे श्रादर्श का पालन रमणियां ही कर सकती हैं । पुरुष कभी प्रेम के लिए, आत्मसमर्पण नहीं कर सकता-वह प्रेम को स्वाथ . हुआ।