पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३१

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३० मानसरोवर पिलाकर पड रहता हूँ। हुजूर, और इक्केवालों को देखिए, तो कोई किसी मर्ज में मुन्तिला है, कोई किप्ती मर्ज में। मैंने तोबा बोला ! ऐसा काम ही क्यों करे, कि मुसीबत में फंसे । बडा कुन्बा है । हजूर, मां हैं, बच्चे हैं, कई बेवाएँ हैं, और कमाई यही इक्का है। फिर भी अल्लाह मियाँ किसी तरह निबाहे जाते हैं। सेठ-वह बड़ा कारसाज है खाँ साहब, तुम्हारी कमाई में हमेशा बरकत होगी। इक्केवाला-आप लोगो की मेहरबानी चाहिए। सेठ-भगवान की मेहरबानगी चाहिए। तुमसे खूब भेट हो गई , मैं इक्केवालो से बहुत घबराता हूँ; लेकिन अब मालूम हुआ, अच्छे बुरे सभी जगह होते हैं । तुम्हारे जैसा सच्चा, दीनदार आदमी मैंने नहीं देखा। कैमी तो साफ तबियत पाई है तुमने कि वाह ! सेठजी की ये लच्छेदार बाते सुनकर इक्केवाला समझ गया कि यह महाशय पल्ले सिरे के बैठकबाज हैं । यह सिर्फ मेरी तारीफ करके मुझे चकमा दिया चाहते हैं । अब और किसी पहलू से अपना मतलब निकालना चाहिए । इनकी दया से तो कुछ ले मरना मुश्किल है, शायद इनके भय से कुछ ले मरूँ । बोला- मगर लाला, यह न समझिए कि मैं जितना सीधा और नेक नज़र आता हूँ, उतना सीधा और नेक हूँ भी । नेको के साथ नेक हूँ , लेकिन बुरों के साथ पक्का बदमाश हूँ। यो कहिए आपकी जूतियां सीधी कर दू;- लेकिन केराये के मामले में किसी के साथ रियायत नहीं करता। रियायत करूँ, तो खाऊँ क्या ? सेठजी ने समझा था, इक्केवाले को हत्थे पर चढा लिया। अब यात्रा निर्विघ्न और निःशुल्क समाप्त हो जायगी ; लेकिन यह अलाप सुना, तो कान खड़े हुए। बोले-भाई रुपये पैसे के मामले में मैं भी किसी से रिवायत नहीं करता, लेकिन कभी-कभी जब यार-दोस्तो का मामला अा पड़ता है, तो झक मारकर दबना ही पड़ता है । तुम्हें भी कभी-कभी बल खाना ही पड़ता होगा । दोस्तो से वेमुरौअती तो नही की जाती । इक्केवाले ने रूखेपन से कहा-मैं किसी के साथ मुरौत नहीं करता।