पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३१०

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स्मृति का पुजारी दूसरा कोई था भी नहीं । हो, सामने से एक स्त्री चली पा रही थी ; मगर उसके सामने इस पर्देदारी की क्या जरूरत ।मैंने तो उसे कभी देखा भी न था। आसमानी रंग की रेशमी साड़ी, जिसपर पीला लैस टका था, उसपर खूब खिन रही थी। रूपवती कदापि न थी , मगर रूप से ज़्यादा मोहक उसकी सरलता थी, और प्रसन्नता । एक बहुत ही मामूली शक्ल-सूरत की औरत इतनी नयनाभिराम हो सकती है, यह मैं न समझ सकता था। उसने होरीलाल के बराबर पाकर नमस्कार किया । होरीलाल ने जवाब में सिर तो झुका दिया ; मगर बिना कुछ बोले आगे बढ़ना चाहते थे कि उसने कोयल के स्वर में कहा-क्या अब लौटिएगा नहीं। आप अपनी सीमा से आगे बढ़े जा रहे हैं । और हाँ, आज तो आपने मुझे देवीजी की तस्वीर देने का वादा किया था। शायद भूल गये, आपके साथ चलूँ ? महाशयजो कुछ ऐसे बौखलाये हुए थे, कि मामूली शिष्टाचार भी न कर सके । यो वह बड़े ही भद्र पुरुष हैं और शिष्टाचार में निपुण , लेकिन इस वक्त जैसे उनके हाथ-पांव फूले हुए थे । एक कदम और आगे बढकर बोले श्राप क्षमा कीजिए । मैं एक काम से जा रहा हूँ। महिला ने कुछ चिढ कर कहा -आप तो जैसे भागे जा रहे हैं । मुझे तस्वीर दीजिएगा या नहीं? महाशयजी ने मेरी अोर कपित नेत्रों से देखकर कहा-तलाश करूँगा सुंदरी ने शिकायत के स्वर में कहा--आपने तो फरमाया था, कि वह हमेशा आपकी मेज़ पर रहती है। और अब आप कहते हैं-तलाश करूँगा। प्रारकी तबीयत तो अच्छी है ! जबसे आपने उनका चरित्र सुनाया है, मैं उनके दर्शनों के लिए व्याकुल हो रही हूँ। अगर आप यों न देंगे, तो मैं आपकी मेज पर से उठा लाऊँगी । ( मेरी ओर देखकर ) श्राप मेरी मदद . कीएिगा महाशय ! यद्यपि मैं जानती हूँ, आप इनके मित्र हैं और इनके साथ दगा न करेगे। आपको ताज्जुब हो रहा होगा, यह कौन औरत महा- शयजी से इतनी निस्सकोच होकर बातें कर रही है । इनसे पहली बार मेरा परिचय सब्जीमडी में हुश्रा । मैं शाक-भाजी खरीदने गई हुई थी। अपनी भाजी मैं खुद लाती हूँ, जिस चीन पर जीवन का आधार है, उसे नौकरों के ।